सिद्धान्तालोचन | Sidhant Lochan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19.14 MB
कुल पष्ठ :
274
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)समालोचना 9 समालोचना को उपयोगिता समालोचना को उपयोगिता के विषय में श्राक्षेप समालोचना के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए प्रकट किया जा चुफा है कि समालोचना साहित्य की गति-विधि का नियमन करने में समय है । समालोचना के इस सामथ्य को दोष मानते हुए कई विचारक समालोचना को साहित्य के समुचित एवं स्वच्छन्द विकास में बाधक समभते हैं । ऐसे विचारक सबसे पहली युति यह उपस्थित करते हे कि साहित्य श्रौर समा- लोचना दोनो में परस्पर मौलिक भ्रन्तर है । इन दोनों के मूल में प्रेरक रूप से भिन्न-भिन्न प्रकार की श्रन्तवू त्तियाँ कार्य करती हैं श्रर्थात् साहित्य के लिए श्रस्तस्तल के सृजन-व्यापार की रचना-कौशल की श्रपेक्षा रहती है श्र समालोचना के लिए भावन-व्यापार की । साहित्य की सृष्टि सुृजनात्मक प्रतिभा पर निर्भर रहती है जब कि समालोचना की उत्पत्ति एक भिन्न प्रकार की प्रतिभा से होती है जिसे भावात्मक प्रतिभा की संज्ञा दी जा सकती है । एक का कार्य है निर्माण करना शभ्रौर दूसरी का उसकी परीक्षा करना । श्रपने इस कथन का समर्थन करने के लिए वे यह भी तक उपस्थित करते है कि जिस काल में समीक्षा का श्रधिक सृजन होता है उस काल की कविता उच्च कोटि की नही होती । इन लोगों का मत है कि जब सुजनात्मक दाक्ति का श्रभाव होता है तभी समीक्षा का भी विकास होने लगता है । इस मत की पुष्टि के लिए वे हिन्दी साहित्य के रीतिकाल श्रौर श्राधुनिककाल को उदाहरणुस्वरूप प्रस्तुत करते हू । इसी उपलक्ष्य में एक श्राक्षेप यह प्रस्तुत किया जाता है कि व्याख्या- त्मक श्रौर समीक्षात्मक साहित्य के विस्तृत सृजन से मूल साहित्य की श्लोर से हमारा ध्यान हट जाता है । उसकी उपेक्षा होने लगती है । फलस्वरूप समीक्षा मूल साहित्य के साक्षातृ रसास्वादन से हमें विमुख कर देती है । इतना ही नही वह हमें मूल साहित्य के सृजन की प्र रणा न देकर समीक्षा- लेखन की श्रोर ही प्रवृत्त करती है । यही कारण है कि श्राज मूल पुस्तकों
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