सर्वियाका इतिहास | Sarviya Ka Itihas

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Sarviya Ka Itihas by भवानी सिंह बहादुर - Bhawani Singh Bahadur

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सर्वियाका इतिहास । ध्डू के कृब्नेमें था । लेकिन उस वक्त बह ज्यादा कार आामद नहीं समझा गया था | यह जिक्र उस समयका है जिस समय इन छोगोंने अपना अधिकार बास्कन स्टेट्सपर अच्छी तरह जमा लिया था और ग्रीक बादशाहकों नाम मात्रके लिये अपना मालिक समझ रक्‍्खा था | ये ठोग खय॑ राज्यका इंतिजाम करते थे और इनके रिवाज़ व कानून बिस्कुल अलग थे जिनका .डुस्तुनतुनियाके नाद्शाहसे कुछ भी सम्बन्ध न था | उस जमानेमें चन्द सरदार थे जो मिलकर रियासतका काम अन्जाम देते थे और उन सरदारोंमेंसे एकको अपना आला अफ- सर बनाते थे लेकिन ये छोग उसकी डुकूमतमें कभी न रहे । बढिकि हर सरदार खुद मुख्तार था । इन लोगोंकी तबीयतोंमिं खुद मुख्तारीका जोश था । ये लोग रईस या बादशाहकी डुकूमतमें रहना पसन्द न करते थे । और इसी वजहसे इन छोगोंका बड़ा नुक्सान हुआ । अगर हम गोरसे इनके इतिहासकों देखें तो साफ तोर पर माछम हो जायगा कि मिलकर रहनेकी आदत न होनेसे इन लोगोंको कया क्या नुकसान हुए और खुद मुख्तारीके जोशने इन्हें क्या क्या फायदे पहुंचाये। ये छोग छोटी छोटी जातियोंमें बैंटे हुए थे और हरेक जाति एक सरदारकों अपना माठिक समझती थी । और ये सरदार एक ऐसे ऊंचे सरदारको चुन लेते थे जो वीर और सब प्रकारसे योग्य हो । और वह नाम मात्रके लिये कुस्तुनतुनियाके बादशाहका मातहत समझा जाता था ।




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