आधुनिक सोवियत रचनाएं | Adhunik Sobiat Rachanayen

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Adhunik Sobiat Rachanayen by राम बिलास शर्मा - Ram Bilas Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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काफी वक्‍त है। खैर तो जरा सास ले ली जाये। मुझे कोई जल्दी नही। मे तो इधर से गुजर रहा था कि तुम पर नजर पडी। सोचा कि कोई श्रपना ही ड्राइवर भाई है इन्तजार कर रहा है. . चलू मैं भी वही उसके साथ दो- चार कश तम्बाक्‌ के ही हो जाये । श्रकेले कुछ मजा नही श्राता ऐसे ही जैसे भ्रकेले दम तोडने मे कुछ मजा नहीं। लगता है कि ठाठ से जीते हो... सिगरेटे पीते हो... भीग गई सिगरेटे. ऐ खेर मेरे भाई गीला तम्बाकू और डॉक्टरी इलाज के बाद घोडा दोनो के दोनो बेकार तो श्रा्षो फिर सिगरेट के बजाय देसी तम्बाकू का ही सहारा लिया जाये । उसने भ्रपने हल्के खाकी पतलन की जेब से नली की तरह लिपटी हुई गुलाबी रग की एक पुरानी-सी थैली निकाली श्रौर खोली तो मेरी निगाह एक कोने पर कढे कुछ शब्दों पर पडी । लिखा था - प्यारे फौजी को - लेबेद्यान्स्काया माध्यमिक स्कूल की छठी श्रेणी की एक छात्रा की श्रोर से । हमने देसी तेज तम्बाकू के कश लगाये श्रौर बहुत देर तक मौन साधे रहे। फिर मैने सोचा कि उससे पूछू कि इस लडके के साथ वह शझ्राखिर जा कहा रहा है भर क्या ऐसा काम श्रा पडा कि इन बुरे रास्तों का मुह देखना पडा। परन्तु में पुछू-पुछू कि उसने ही पहले सवाल कर दिया - क्या पूरी लडाई भर ड्राइवरी ही करते रहे? १६




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