अवधी और उसका साहित्य | Avadhi Aur Uska Sahitya

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क्षेमचंद्र 'सुमन'- Kshemchandra 'Suman'

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त्रिलोकीनारायण दीक्षित - Trilokinarayan Dikshit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्द श्रवंधी श्रौर उसका साहित्य १ अर एवं रा के स्थान पर अवधी बोली में इ होती है और त्रज में य होता है । २. पछाँही हिन्दी में इ श्र उ के स्थान पर य श्र व होता है | ३. पछाँही हिन्दी से ऐ? श्र और संस्कृत-उच्चारण क्रमशः विलीन हो गए । अवधी मैं यह उच्चारण वर्तमान काल में भी उपलब्ध होता है । ४. झअवधी मैं दो अथवा दो से झ्धिक व्णों वाले शब्दों के श्रादि में इू? और उ के अनन्तर रा का उच्चारण प्रचलित है। परन्तु यह विशे- घता पछाँही हिन्दी में ष्टिगत नहीं होती । उदाहरणा थ-- सियार (श्रवधी) तथा प्यार (पछाँही हिन्दी) । ५. ्वधी माषा की प्रवृत्ति सामान्यतया लव्वन्त की श्र है त्और इसके विरुद्ध खड़ी बोली तथा ब्रज की दीर्घान्त के प्रति । ६. अवधी में साधारण क्रिया के रूप लब्वन्त होते हैं परन्तु पछाँदी हिन्दी मैं नकारान्त । उदाहरणाथ--अवधी मैं जाब चलब दूयाब ल्याब होता हैं परन्तु ब्रज मैं जान चलन दिन लेन श्रादि रूप होते हैं । अवधी-व्याकेरणु का मुख्य अंग हैं उसके कारक-च्िह्न । अवधी के कारक- चिह्न खड़ी बोली श्र ब्रज से मिन्न हैं । निम्न लिखित तालिका से इन तीनों बोलियों के कारक-चिह्न स्पष्ट हो जाते हैँ-- संख्या कारक... खड़ी बोली व्रजमाषा .... अवधी श् कता कसम डक कोई घि शेष न्चि ह्व नहीं है ० 2] को लिए खातिर तई कं व ्र कु के हि हि कहूँ के को ३. करण. ने द्वारा से... नें... सन से सौ ४... सस्प्रदान.. को लिए खातिर तई को कूँ कूँ क फहेँ के




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