बीसवी शताबदी का रुसी साहित्य | The 20th Century Soviet Literature Vol. 2

The 20th Century Soviet Literature Vol. 2 by मक्सिम गोर्की - maxim gorki

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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और उन्होंने उससे पूछा। युवक ने जवाब दिया - मुके खोलो जब तक मैं बंधा हुआ हुं एक शब्द भी मुह में नहीं निकालूंगा और जब उन्होंने उसे खोल दिया तो उसने पूछा - तुम लोग क्या चाहते हो? और उसका लहजा ऐसा था जैसे वे उसके गुलाम हों यह तुम जानते हो .. उस बुद्धिमान ने कहा। मैं आप लोगों के सामने अपने कृत्यो की सफ़ाई किसलिये पेश करू ? इसलिये कि हम तुम्हें समभ सकें । सुनो गर्वीलि तुम्हारी मौत तो निद्चित है ... हमे यह समभने में मदद दो कि तुमने ऐसा काम क्यों किया। हम जीवित रहेगे और जितना कुछ हम जानते है उसमे वृद्धि करने से हमे लाभ होगा .. अच्छी बात है मैं बताता हूं हालांकि मै खुद भी शायद पुरी तरह नहीं समभता कि मैने ऐसा क्यो किया । मुझे ऐसा लगता है कि मैंने इसलिये उसकी हत्या की कि उसने मेरी अवहेलना की .. और मैं उसे चाहता था। लेकिन वह तुम्हारी नहीं थी उन्होने उससे कहा । क्या तुम केवल उन्ही चीज़ों से काम लेते हो जो तुम्हारी होती है? मैं देखता हूं कि हर आदमी के पास हाथ पांव और बोलने के लिये एक ज़बान के सिवा और कुछ अपना नही होता . फिर भी वह ढोर- डंगरों स्त्रियों जमीन . . और अन्य कितनी ही चीज़ों का स्वामी हो- ता है.. इसका उन्होंने यह जवाब दिया कि मानव जिस भी चीज का स्वामी बनता है उसका मूल्य चुकाता है - अपनी बुद्धि से अपनी शक्ति से कभी अपनी जान तक से । उसने कहा कि वह कोई मूल्य नहीं चुकाना चाहता । देर तक उससे बाते करने के बाद उन्होने देखा. कि वह अपने आपको अन्य सब से ऊपर समभता है अपने सिवा अन्य किसी को खातिर में नहीं लाता। जब उन्होंने अनुभव किया कि ।वह खुद अपने को कैसे एकाकीपन का शिकार बन रहा है तो वे सभी. भयपग्रस्त हो उठे। उसकी न तो कोई जाति थी उसका न कोई अपनी था न ढोर- श््ड




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