राजस्थानी वातां | Rajasthani Vataan

Rajasthani Vataan by सुर्यकरण पारीक - Suryakaran Pareek

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( है. देवरे कालरां बाजे छः । जोगेसर संखनाद पूरे छः । लेसा कि ऊपर कह आये हैं वातों के रूप में राजस्थान का प्राचीन इतिहास लिखा गया है अतणुबव इन बातों में ऐतिहासिक सामग्री बहुतायत से मिलती हैं । ख्यात की. वातों में और मनोर॑जनार्थ रचित बातों में एक स्पष्ट अंतर यह होता है कि इनमें कल्पना की मात्रा अधिक रहती है । ख्यात को बातों में जहाँ तक दोसका है ख्यातलेखक ने बंधावलियों के क्रम से प्रत्येक व्यक्ति ओर वंश के जीवन काल की मुख्य बातों का यथार्थ वर्णन किया है । कहानी की बातों में किसी एक रेतिहासिक कार्य को लेकर ओर उसमें कल्पना की पुट देकर मनोर॑जक सामग्री उपस्थित की गई है । अतएव यद्यपि इन कहानियों की आधारभूत बातें ऐतिहासिक हैं -परन्तु कहानी के समस्त रूप को ऐतिहासिक तथ्य मान लेना भारी भूल होगी । कहानी. एक कला है . ओर उसका प्रधान उद्द श्य है मनोरंजक रूप में किसी प्रमुख व्यक्ति अथवा घटना के सम्बन्ध में आख्यान लिखकर सहदय जनता का हृदय आकर्षित करना । संसार के सभी साहित्यों में जहाँ भी देखा जाय क्या कहानी क्‍या उपन्यास नाटक कान्य--सभी में कल्पनात्मक प्रसंगों द्वारा वास्तविक तथ्यों को एक नवीन रागात्सक रूप दे दिया जाता हे ।.. वही बात इन कंडानियों में भी समकनी चाहिए । इस दृष्टि से यदि देखा जाय तो जगदेव पैँवार की _ वात में यद्यपि जगदेव ओर सिद्धराव सोलंकी ऐतिडासिक व्यक्ति हें और इतिहास से उनका एकत्रित होना सिद्ध भी होता है ओर एक जगह लिखा भी हैे-- जगदेव पैँवार सिद्धराव सोल खीरो चाकर । कंकाली देवी ने आपरो सीस दियो । --परन्तु तो भी जगदेव क। सेरव के गण को इन्द्र-युद्ध में परास्त करना तथा दो बार शीश-दान करने को उद्यत शोवा अतिशयो क्रिएर्ण कल्पना मात्र है । सम्भव है जगदेव ने काम पढ़ने




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