जंगल में मंगल | Jungle Me Mangal

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Jungle Me Mangal by शैलेश मटियानी - Shailesh Matiyani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भेड़ें और गड़ेरिये २१ जनता समझती थी आज नेता जी नाराज हो जाएंगे मगर नेता तपोवद्धन जी जनता के दुख-दर्द को समझते थे । वह शान्त भाव से ही बोले-- ओ मेरे देश के प्यारे लोगो एक सवाल मैं भी पूछता हूँ । क्या आप लोगों में से किसी ने आजादी से पहले किसी अंग्रेज अफसर से भी पूछा था कि उसके पास बंगले क्यों हैं ? कारें क्यों हैं ? नहीं तब दर- असल आप लोगों को उनसे कुछ भी पूछने का कोई हक था ही नहीं नेता तपोवद्ध न जी ने जोर से माइक पर मुक्का मार दिया तो जनता सहम उठी । मगर तभी जनता ने देखा दूसरे ही क्षण नेता तपो- वद्धन और भी ज्यादा झुककर प्रणाम करते हुए मुस्करा रहे हैं-- ओ मेरे देश के प्यारे लोगो मगर मुझसे--और सुझ-जैसे हरेक अपने जन- सेवक से--यह सब-कुछ पृछने का पुरा-पुरा हुक आप लोगों को है । क्योंकि स्वतंत्र भारतवर्ष के असली राजा आप हैं। आखिर इसी बेचारिक स्वतंत्रता के लिए तो हमने कुर्बानियाँ दी हैं ताकि जनता अपने हम- जैसे सेवकों से जो-कुछ पुछना चाहे पूछ सके बोलो आजाद हिन्दुस्तान की-ई-ई--- श्र ज्जै-ज्जै-ज्जै 1 जनता खुशी से शूम उठी । जनता को अपने अप- राध के प्रति ग्लानि भी हुई कि उसने अपने महानु नेता पर आक्षेप किया । जनता श्रद्धा से जयकार करने लगी-- हमारे महाद्द नेता तपोवद्धन जी की ई-ई-ई ज्जै उजै ज्जै मगर एक दिन जनता ने उसकी आँखों में घूल झोंकती जाती नेता दुलारे लाल जी की कार को भी रोक लिया और उनके देश की शासन- व्यवस्था को ढोने के .लिए चौड़े ऊचे बनाएं हुए कंधों पर लुढ़की हुई सुन्दरियों की ओर संकेत किया-- नेता जी थह आप का कौन-सा रूप




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