बुद्ध - वाणी | Buddh- Vani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जागृतिके चार साधन (चार स्मृत्युपस्थान ) १. शुद्ध होने के लिए शोक श्रौर दुमखसे तरने के लिए दौर्मनस्य ( मानसिक दुःख ) का नाश करने के लिए सन्माग प्राप्त करने के लिए तर निर्वाणुषद्का साद्चात्‌ करने के लिए चार स्मृति-उपस्थानोंका मार्ग ही एकमात्र सच्चा माग है । २. चार स्मृर्ति-उपस्थान ये हैं -- (१) श्रपनी देहका यथाथ रौतिसे श्रवलोकन करना (२) वेद्नाकाक# यथार्थ रीतिसे अवलोकन करना (३) चित्तका यथाथे रोतिसे श्रवलोकन करना (४) मनोदइतियोका यथाथे रीतिस श्रवलोकन करना । ये चार स्पृति-उपस्थान झथात्‌ जागएतिके श्रेष्ठ साघन हैं । ३. श्रण्यमं इनके नीचे श्रथवा एकातमें पालथी मारकर गर्दनसे कमसरतक शरीर सीघा रखकर भिल्लु जागरूक रदकर श्वास खींचता है तौर प्रश्वास बाहर निकलता है उसका श्वास श्र प्रश्वास दीधे है या हस्व इसकी उसे पूर्ण स्टृति होती है जायतिपूवंक वह श्रपने प्रत्येक श्रारवास-प्रश्वासका श्म्यास करता है । जिस प्रकार वह आश्वास श्र प्रश्वासकों सम्यकू रीतिसे जानता है उसी प्रकार वह श्रपनी देहका यथाथरीतिसे अवलोकन करता है | ४. चलते समय वह यह स्मरण रखता हे कि मे चल रहा हूं खड़ा होता है तो मैं खड़ा होता हूं यदद रमरणु रखता है जब बेठा होता इंद्रिय और विषयके एकसाथ मिलने के बाद जो दुःख-सुख आदि अनुभव होता है।




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