भारतीय अर्थशास्त्र | Bhartiya Arthshastra
श्रेणी : अर्थशास्त्र / Economics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
66.44 MB
कुल पष्ठ :
725
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about केवल कृष्ण ड्युवेत - Keval Krishna Dyuvet
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भौगोलिक पुष्ठभूमि प्र जो हमारे आधिक आत्मनिर्भरता के उद्देश्य को हमारे समीप आता हुअ-दिखलॉर्ति है किन्तु शर्त यह है कि हम उस तक पहुंचने की इच्छा करें । किन्तु यह कहा जाता हेकि भारतीय जलवायु का मानवी शरीर पर दुर्बलताकारक प्रभाव डालता है । यह लोगों को असावधान तथा सुस्त बनाकर उनको कठोर तथा लगातार परिश्रम करने के अयोग्य बना देता है । यह कहा जाता है कि अयनवृत्त के निवासियों का मस्तिष्क सोने वाला तथा गतिहीन होता है । किन्तु हमको अपने जलवायु के इस विपरीत प्रभाव के विषय में अतिशयोक्ति से काम नहीं लेना चाहिए और नाही अपनी आधथिक गिरावट का कारण उसे मानना चाहिए । ऐसे ही जलवाय में प्राचीन काल के भारतीय कला साहित्य औषधि व्यापार और उद्योग-धन्धे आदि उन्नति के चरम-शिखर पर पहुंचे हुए थे अतएव अपनी आर्थिक गिरावट के कारण हमको कहीं और ही खोजने चाहियें । ४. वर्षा । भारत जैसे कृषि प्रधान देश के लिए वर्षा के महत्व के विवय में कहना कुछ भी अतिशयोक्ति नहीं हो सकती । यह व्यर्थ नहीं है कि एक भारतीय किसान कष्ट के समय सदा त्राण पाने के लिए ऊपर को देखा करता है। अशिक्षित भारतवासी का परमात्मा बादलों में निवास करता है । वास्तव में परमात्मा के विषय में उनकी ऐसी ही कल्पना है । वर्षा समय पर होनी ही चाहिए और वह पर्याप्त होनी चाहिए किन्तु वह आवश्यकता से अधिक भी नहीं होनी चाहिए और साथ ही उसको समानभाव से विभकत होना चाहिए । इनमें से किसी एक बात के भी न होनें से भारतीय किसान को आपत्ति का मुकाबला करना पड़ता है। यह ॒कहा जाता है कि भारतीय वर्षा प्राचीन राजा-महाराजाओं का सभी प्रकार का बुद्धि-चापल्य प्रगट करती है। हमको यह समझ लेना चाहिए कि इस विषय में प्रकृति के अपना कार्य न करने से वह लाखों व्यक्ति नष्ट हो सकते हें जो केवल कृषि पर निभेर करते हैं किन्तु वर्षा के कारण केवल किसानों को ही कष्ट भोगना नहीं पड़ता । फसल न होने का अथं है माल की मांग को कम करना उसका अं है दक्तिह्दीनता व उसके परिणाम-स्वरूप सरकारी राजस्व में कमी आती हैं जिसके फलस्वरूप सरकार को अपने कार्यों में कांटछांट करके कार्यकर्ताओं की छंटनी करनी पड़ती है । वास्तव में इसके प्रभाव बहुत दूर तक जाते हें और वह हमारे समस्त आधिक जीवन में छिद्रों में से होकर घुस जाते हूं । सर गे फ्लीटवुड विल्सन (817 (प्र निह्टाएर000 15071) ने जो भारत के कभी अ्थ सदस्य थे भारतीय बजट को वर्वा में जुआ बतलाया है और ऐसा कहने में वह पुर्णतया ठीक थे । भारत में वर्षा अनेक रूप दिखलाती हैं उसका विभाजन तो देदा भर में अत्यधिक विजम है। औसत वाधिक वर्षा देश के विभिन्न भागों में इतनी अधिक विभिन्नता लिये हुए हू कि यदि हिसार (पंजाब) में वे भर में १० इंच होती है तो चेरापूंजी (आसाम) में ४६० इंच होती है । आसाम बंगाल तया पद्चिमी घाट जैसे प्रदेश अत्यधिक
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