रथयात्रा | Rathyatra
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9.62 MB
कुल पष्ठ :
181
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)थारतीय सस्कुति में शिव का स्वरूप / 15 वहुत बाद में पूज्य भैया साहव पंडित श्री नारायण चतुर्वेदी के निकट सम्पर्क मे आया उन्होंने बतलाया-मेरे पूज्य पिताजी ने एक वार मुझे समझाया था देखो पढने-लिखने की एक ही कसौटी है कि अपनी दरिद्रता पर गर्व कर सको। अपने पास कुछ नहीं है तो अपने को हीन न समझो तुम्हारे पास संस्कार हैं विद्या है आचार है इससे अधिक बड़ी चीज सम्पन्नता नही होती है। मैया साहव की वह बात शिवत्व की मेरी अवधारणा से जुड़कर मन को बहुत आपूरित कर देती हे-सारी योग-पिपासा शान्त हो जाती है । वास्तविक योग तो वह है कि जो दूसरों का योग करके प्राप्त होता है वास्तविक वैभव तो वह है जो अपने पास मिट्टी के पात्र ही बचाकर रखता है। मेरी सास बतलाती थीं कि वह जिस बाखरी मे आयीं वह फकीरी बाखरी थी बाबा भोजन करने चलते तो जो भी उस समय दरवाजे पर है उसे न्योता देते और कभी-कभी स्थिति ऐसी होती कि अपने हाथ से भात्त-दाल का कौर वनाकर एक-एक कौर सबको दे देते और अपना हाथ चारकर तृप्त हो जाते। लोठा लेकर चलते कोई कहता बावा मेरे पास लोटा नहीं है और लोटा दे आते मिटटी के पात्र मैँगा लेते। यह तब जब कि बड़ी जमींदारी थी | सैकड़ों गायें थीं हजारों बीघे जमीन थी । हमारी संस्कृति ऐसे ही मरघटवासी और फक्कड़ शिव की आराधना करती है। शिव की आराधना का जर्थ है तप ओर ध्यान की आराधना । सदैव संचरणशील भूतभावन की आराधना मृत्युंजय विषपायी श्मशानवासी योगीश्वर की आराधना अर्धागिनी पर सब घर का भार छोड़कर निश्चिन्त घर-बारी की आराधना घर में कलह हो कुछ हो चुपचाप विहैंसते रहते भोले बाबा की आराधना प्रत्येक कला की शिक्षा देने वाले परम गुरु की आराधना और बावरे नाह बावले मालिक की आराधना जिसके दरवाजे पर चले जाइए आपको सब कुछ मिल जायेगा। ऋद्धि-सिद्धि सब पा जायेंगे। शिव की आराधना बड़ी सहज है एक लोटा जल कुछ बेल की पत्तियाँ कुछ मदार के फूल धतूरे के फल और बम-बम की बोल शिव प्रसन्न। भारतीय संस्कृति के पास पहुँचना बहुत सहज अपना यह लोटा यह शरीर--मांजिए धोइए चमकाइए इसमें शुद्ध जल भरिए नदी के मझधार का जल भरिए। जीवन के अजस्र प्रवाह का रस भरिए संसार के निखिल मादन भाव को इस संस्कृति के आनन्द के आगे अर्पित कीजिए। अपनी इच्छा क्रिया ज्ञान शक्तियों की विल्वपत्नी संसार को अर्पित कीजिए। अपने समूचे उन्मनभाव को अर्पित कीजिए । संस्कृति की यहीं आराधना हे। निराकार को आकार देना । आकार को प्राणों का स्पर्श देना भीतर का उमडाव सब बाहर कर देना । बाहर का उमडाव भीतर भर लेना बौराये हुए संसार का बौराया भाव अपने भीत्तर कर लेना और भीतर के सारे उन्मादों को विराट उन्माद
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