भरत का संगीत - सिद्धान्त | Bharat Ka Sangit Shidhant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न स्‍टन् वधघि एवं परावधि की प्राप्ति--मत्तकोकिला एवं एकतन्श्री पर मूच्छेना --जातिविशेष के लिए मूच्छेंना-विशेष का परचात्कालीन नियम और उसका प्रयोजन--द्ाददास्वर-मूच्छेंनावाद और उसकी पश्चात्कालीन आलोचना--वादन में मूृच्छनाजन्य सौक्य--मतज़-किन्नरी--जाति- विशेष के लिए मूच्छैनाविद्षेष का मतज्ञकृत निर्देश--तन्त्रीवाद्यो पर मूच्छेनाओं की स्थापना का प्रकार--मतज़-किन्नरी पर कुम्भ--मूच्छेना सिद्धि पर शाज़ंदेव और कल्लिनाथ के कथन का रहस्य--मूच्छेंनाओं की सिद्धि एवं उनकी संज्ञाओं की अन्व्थता । २४-७३ तृतीय अध्याय जाति-लक्षण--जातियों के भेद--जाति के दस लक्षण अंशस्वर ग्रहस्वर तारगति मन्द्रगति न्यास स्वर अपन्यास स्वर अल्पत्व बहुत्व षपाडवित औड्वित--अन्तरमाग संन्यास विन्यास--स्थायी स्वर-- जातियों के लक्षण विभिन्न आचारयों के मत जातिविशेष से सम्बद्ध मूच्छेंना- विशेष में विभिन्न अंद-स्वरों का प्रदर्शन । ७४-१३४ चतुर्थ अध्याय आरम्भ आलाप करण पद--पषाडजी-प्रस्तार--आर्षभी-प्रस्तार-- गास्थारी-प्रस्तार--मध्यमा-प्रस्तार--पब्चमी-प्रस्तार--घैवती - प्रस्तार --नैषादी प्रस्तार--पड्जर्केशिकी-प्रस्तार--षड्जोदीच्यवा-प्रस्तार-- षड़्ज-मध्यमा - प्रस्तार--गान्धारोदीच्यवती - प्रस्तार--रकक्‍्तगान्धारी - प्रस्तार--कंशिकी-प्रस्तार--मध्यमोदीच्यवा-प्रस्तार--कार्मारवी-प्रस्तार -गास्थार-पव्चमी-प्रस्तार--आन्ध्री-प्रस्तार--नन्दयन्ती-प्रस्तार।. १३५-१९० आन जल कप वि पञ्चस अध्याय साधारण और उसका लक्षण--स्वरसाधारण--कैदिक स्वर और उनके उपयोग के अवसरों पर कुम्भ का दृष्टिकोण--जातिसाधारण ।. १९१-१९८ पष्ठ अध्याय राग और उसका लक्षण--सात ग्राम राग--मध्यमग्राम राग कद्यप एवं शाज़ंदेव का विधान आलाप पद आक्षिप्तिका--षड्जग्राम राग कश्यप एवं शाज़ंदेव का विधान आलाप करण पद आक्षिप्तिका---




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