राजस्थानी रनिवास | Rajasthani Ranivas
श्रेणी : भारत / India
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
29.73 MB
कुल पष्ठ :
350
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्२ राजस्थानी रनिवास होने पर गाना-नाचना कर छेती । शादी के समय मे भी इसका अवसर मिलता । पीहर जाने पर थोडा-सा उन्हे और स्वच्छन्द मिलने-जुलने का मौका मिलता- यद्यपि माता और भाभी के दृढ़ शासन के भीतर ही । ठाकुरानियों को अपने राजा के अन्त पुर मे भी जाकर अपनी दुनिया को कुछ बडा करने का मौका सिलता । जसपुर-जनपुर के राजा नई सभ्यता के लाने मे पहले थे इसलिए वहा जाने पर ठेकाने की ठाकुरानियों को भी नई हवा लगे बिना नहीं रहती । तीर्थ आदि करने का सौभाग्य बहुत कम ही अन्त पुरिकाओ को मिलता और सो भी अधिकतर विधवाओ को ही । विधवा होना ठाकुरानियों के लिए जीवन-मृत्य जैसा था । पति के मरते समय अक्सर पत्नी को खबर नही दी जाती । सबेरे खबर मिलती तो स्त्री आकर पति के झव का चरण-स्पर्श करके चुडिया निकालकर वही लाश पर डाल देती । लौडिया भी उनका अनुकरण करती लेकिन सातमासी के बाद उनकी चूडिया फिर हाथ मे आ जाती । पति के मरते ही ठाकुरानियो को छ महीने के लिए कोठरी में बन्द कर दिया जाता । इसी कोठरी मे खाना-सोना ही नही बल्कि शौच॑-स्नान भी करना पडता । वहा सूथ का भला दर्शन कहा दरवाजे पर भी मोटा परदा डाल दिया जाता । ऐसी अधेरी कोठरी मे यदि वह तपेदिक के चगृल में न फँसे तो आइचयं की बात होती । छ महीने के बाद कोई-कोई सौभाग्यशालिनी विधवा पीहर चली जाती । है रे ८ ९ बचपन मे गौरी की तीथंयात्रा काफी लम्बी हुई थी । उसमें मा के मायकेवाल्मे की जसात मिलकर पचास-साठ आदमी हो गये थे। गौरी को ठीक क्रम तो याद नही लेकिन वह सम्भवत मथुरा प्रयाग काशी गया जगन्नाथ मदरास श्रीरगम रामेइवर बम्बई अहमदाबाद पुष्कर के रास्ते हुई हुई थी । मथुस में जाने पर गौरी को अपनी ही उमर की पुरोहित की लडकी से बहिन ( बहेली ) बनने की इच्छा हुई और दोनो जमुनाजी मे स्नान करके बहिन बन थी गई । दोनो सबेरे के वक्त छत पर जाकर दही रोटी का कढेबां करने लगी । उन्हे माठम नहीं था और नई-नई बहेली बनने की उमग भी थी इसलिए नहीं खयाल किया कि यहा अपना दरबार नही बल्कि दूसरे ही किसी का राज्य है । एकाएक छत पर तीन- चार बन्दर आ गये । उन्होने दोनो बहेलियो को ढकेलकर लेटा दिया । उनकी तो सुध-बुध खो गई । बन्दरो ने दो-वचार चपत लगा माखनचोर कन्हेया का अभिनय करते दही-रोटी से अपना कलेवा कर लिया । बहेलियो के चिल्लाने पर लोग
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