नया वसन्त | Naya Vasnt

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Naya Vasnt by रामेश्वर प्रसाद अग्रवाल - Rameshwar Prasad Agrawal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| नया बसन्त निकोला बहुधा यह भी कहता था कि उसने अपने समय में बारूद का भी प्रयोग किया किया है । दो बष तक बह सोच पर था । बन्दूक हसेशा उसके कन्घों पर रहती थी । जब युद्ध समाप्त हुमा तो निकोला गाँव बापस झाया और शीघ्र दी गाँव की सोबि- यत का अध्यक्ष चुन लिया गया । बह साफ साफ कहता था कि सेर बिल्लों और बैजों से गाँव वाले छत्यन्त प्रभावित हो गये थे । दरअसल बात यदद थी कि उसे जंगल श्र जंगल में रहने वाले ही बहुत अच्छे लगते थे--वह जन्स से ही शिकारी था । गाँव की सोवियत का चेयरमैन वह अब तक बना हुआ था गाँव वालों ने उसके विरुद्ध कोई कठोर कार्यवाही नहीं की थी इसका कारण केवल इतना था कि उसके सहयोगी बहुत जस कर काम करने वाले थे। वास्तव में बह्दी सब कास करते थे झौर चेयरमैन को भी अपने साथ घसीटते चलते थे । निकोला की लापरवाही से सभी परेशान रहते थे विशेषकर केसो । पर जव उससे सवाल-जवाब किया जाता था बह किसी न किसी प्रकार सफाई दे देता था बातचीत करने के लिए कोई अन्य विषय न सिलने पर केसो से शिकार की ही बात छेड़ दी । उसने कहा किसी अच्छे शिकार के लिये चलना चाहिये । ? निकोला ने कहा अच्छे शिकार के लिये ? देख नहीं रहे हो कि चीलें उड़ रदी हू । नहीं अभी यहाँ जंगल में कुछ भी नहीं किया जा सकदा है । निकोला द्वाथों पर सिर टेक कर बैठ गया । बात बढ नहीं पाई । केसो ने छापने हाथ में बंधी घड़ी देखी । यह उसके पास मोर्चे पर जाने की बची हुई स्मृति थी । २८




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