चलते - चलते | Chalte - Chalte
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
34.99 MB
कुल पष्ठ :
515
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about भगवतीप्रसाद वाजपेयी - Bhagwati Prasad Vajpeyi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्र पवलते-चलते इतने मे जो लोग लालरेन लिये दूर से कुछ फुसफुसाते हुए प्रतीत हो रहे थे वे सचपुच हम लोगों के सामने श्रा खड़े हुए । उनमें से एक बोला-- श्राप सब्र लोग हमारे छातों के श्रन्दर आ जायें । आर प्रकाश श्र जोधा तुम इनका सब सामान उठा लो | ? इस श्रयाचित श्रागत अवलम्ब को. शकस्मातू प्रत्यक्त देख त्रिवेणी बोला-- ्ाप लोगों को हमारे इस सकट का पता कैसे चला ?? मामाजी मारे प्रसन्नता के फल गये । बोले-- कहाँ हो गौरीशकर देख लो श्र श्रच्छी तरह से हमारे गॉवों की शेष सभ्यता को । ? फिर उन लोगों की श्रोर देखकर मानों सहसखों वाशियों मुद्रात्नों और ध्वनियो से अपनी हार्दिक कृतशता प्रकट करते हुए कहने लगे-- धन्य है श्राप लोग जा श्राज हमारी लाज तो रह गयी नहीं तो इन लोगों के सामने में कभी बात करने योग्य न रह जाता लालटेन ज़रा इघर दिखाना भाई हमारे बीच एक लड़का रामलाल है । सबसे पहले उसी का कुछ प्रबन्ध करना होगा । क्योकि यह हमारे मुदल्ले-भर का मान्य श्र सुखी घर का है । पर वह तो यहाँ कही दिखलाई ही नहीं पड़ता । कहाँ गया रे शैतान ? तत्र उन्ही श्रादसियों के बीच से निकलकर रामलाल यह कहता खड़ा हुश्ना- मै यह सामने ही तो हू नाना । ? श्र तब वे सब त्रागन्तुक भी एक साथ हँस पड़े । फिर उनमे से एक ने बतलाया कि यही लड़का तो हमारे यहाँ जाकर हमे यहाँ ले श्राया है। मै आराश्चयं से रामलाल को देखता रह गया । उसी को में सबसे अधिक डरपोक समझता था । सद्दायक लोगो के साथ-साथ चलता हुआ गौरी बोला-- रामलाज ने सचमुच तारीफ़ का काम किया | ? त्रिवेणी कहने लगा-- तभी एक बार मेरे मन मे श्राया था कि रामलाल बोल क्यो नहीं रहा है । में जानता था कि जो बात हम लोग केवल सोचते रह जायेंगे रामलाल उसे करके दिखा देगा | ? एक दालान में हम सब पहुँचा दिये गये / नीचे पयाल बिछा था ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...