चलते - चलते | Chalte - Chalte

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Chalte - Chalte by भगवतीप्रसाद वाजपेयी - Bhagwati Prasad Vajpeyi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्र पवलते-चलते इतने मे जो लोग लालरेन लिये दूर से कुछ फुसफुसाते हुए प्रतीत हो रहे थे वे सचपुच हम लोगों के सामने श्रा खड़े हुए । उनमें से एक बोला-- श्राप सब्र लोग हमारे छातों के श्रन्दर आ जायें । आर प्रकाश श्र जोधा तुम इनका सब सामान उठा लो | ? इस श्रयाचित श्रागत अवलम्ब को. शकस्मातू प्रत्यक्त देख त्रिवेणी बोला-- ्ाप लोगों को हमारे इस सकट का पता कैसे चला ?? मामाजी मारे प्रसन्नता के फल गये । बोले-- कहाँ हो गौरीशकर देख लो श्र श्रच्छी तरह से हमारे गॉवों की शेष सभ्यता को । ? फिर उन लोगों की श्रोर देखकर मानों सहसखों वाशियों मुद्रात्नों और ध्वनियो से अपनी हार्दिक कृतशता प्रकट करते हुए कहने लगे-- धन्य है श्राप लोग जा श्राज हमारी लाज तो रह गयी नहीं तो इन लोगों के सामने में कभी बात करने योग्य न रह जाता लालटेन ज़रा इघर दिखाना भाई हमारे बीच एक लड़का रामलाल है । सबसे पहले उसी का कुछ प्रबन्ध करना होगा । क्योकि यह हमारे मुदल्ले-भर का मान्य श्र सुखी घर का है । पर वह तो यहाँ कही दिखलाई ही नहीं पड़ता । कहाँ गया रे शैतान ? तत्र उन्ही श्रादसियों के बीच से निकलकर रामलाल यह कहता खड़ा हुश्ना- मै यह सामने ही तो हू नाना । ? श्र तब वे सब त्रागन्तुक भी एक साथ हँस पड़े । फिर उनमे से एक ने बतलाया कि यही लड़का तो हमारे यहाँ जाकर हमे यहाँ ले श्राया है। मै आराश्चयं से रामलाल को देखता रह गया । उसी को में सबसे अधिक डरपोक समझता था । सद्दायक लोगो के साथ-साथ चलता हुआ गौरी बोला-- रामलाज ने सचमुच तारीफ़ का काम किया | ? त्रिवेणी कहने लगा-- तभी एक बार मेरे मन मे श्राया था कि रामलाल बोल क्यो नहीं रहा है । में जानता था कि जो बात हम लोग केवल सोचते रह जायेंगे रामलाल उसे करके दिखा देगा | ? एक दालान में हम सब पहुँचा दिये गये / नीचे पयाल बिछा था ।




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