मेरे जेल के अनुभव | Mere Jel Ke Anubhav

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Mere Jel Ke Anubhav by महात्मा गाँधी - Mahatma Gandhi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ८ ) लेना चाहिए । सबेरे छुः बजे कोठरो का दरवाज़ा खुलता है | डस समय प्रत्येक क दी समेटे हुए बिछौने के पास श्रदूव के साथ खड़ा मिलना चाहिए । रक्षक ्ाझर प्रत्येक केदी को गिन जाता है | इसी तरह क्ोठरी बन्द करते समय हर पक कैदी को बिछोने के पास खड़ा रहना चाहिए । सिवा केद- खाने की श्र कहीं की फोई चीज़ कोरी के पास न होनी चा- हिए । कपड़ों के लिवा श्रौर कोई चस्तु ग़वनर की झाशा बिना पास रखने की मनाही है । हर एक केदी के ऊपरी कपड़े के पक बटन पर एक छोटी सी थेली सिली रददती है । उसमें कौदी का टिकट रहता है। टिकट पर उसका नम्बर सज़ा का ब्योरा उसका नाम इत्यादि बातें लिखो रहती हैं । साधारण नियमों के झनुसार दिन को कोठरी में रद्दने की श्ाज्ञा नहीं है जिन्हें काम पर जाना होता है थे तो कोठरी में रह ही नहीं सकते । परन्तु बेकार कदो भी नहीं रह सकते । उन्हें गलियों में रदना पड़ता है । हमारे खुभीते के लिए गवनेर ने एक मेज़ शोर दो बचें कोठरी में रखने की इजाजत दी थी । उनसे हमें बड़ा श्राराम मिला | नियम है कि दो मददीने की सजा चाले कोदी के बाल श्र मुंछ़ काट डाली जाय । हिन्दुस्तानियाँ पर इसका व्यवहार सख्ती से नहीं किया जाता । जो इनकार करता है उसकी मूंछे रहने दी जाती हैं । इस विषय की पक दिल्लगी सुनिए । में तो स्वयं जानता दी था कि कं दिया के बाल कटवाये जाते हैं। शोर यह भी खबर थी कि ये बाल के दिया के श्राराम के लिप कटाये जाते हैं । में इस नियम का कायल हूं । मु यह नियम झावश्यक मालूम द्दोता है । जेलखाने में कंघियां इत्यादि याल साफ रखने की चीज़ तो मिलती नहीं श्रोर बाल श्रगर




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