आत्मशक्ति का विकास | Aatmashakti Ka Vikas

Aatmashakti Ka Vikas by श्रीपाद दामोदर सातवळेकर - Shripad Damodar Satwalekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१५) इसके साथ खाथ पूर्वो्त ास्त्रैका उत्तम अध्ययन करनेसे अपूव लाभ दो जाता है। अध्ययनक साथ अनुष्वानकी भी अत्यंत आवद्यय कतां है इसमें कोई संदेह नहीं है । कई लोग ऐसे उतावलें होते हैं कि ठोक प्रकार सोचते हो नहीं । सब प्रमाणोका यथायोग्य विचार करके करने योग्य कतेव्य उत्तम रोतिसे करने चाहिये तभी सिद्धि प्राप्त हो सकती है अन्यथा केसी होगी? योग्य प्रमाणीक्री खद्दाययतासे जो. विधेक देगा वह ठोक वियेक दो सकता हे परंतु दाषयूक्त प्रमाण लेकर दी यदि कुछ न कुछ अनुमान अथवा लिद्धांत निश्चित किया ज़ाय तो उसके गलत होनेमें काइ भी दांका नहीं है । इसलिये अपने प्रमाणीकी निर्दोधताका भी वियार अवदय करना यादिये । कई लोग पेखे पक्षपाती और पूषे-प्रहसे दूषित होते हैं कि थे विवेक करके सत्यासत्य निणय करनेके लिये सवंथा अयेग्यद्दी देते हैं पुर्वेप्रदोसे उनका मस्तिष्क इतना बिगड़ा दाता है. कि थे चिवेक कर नमें अलमथ हो जाते हैं। प्रायः मनुष्य अपनी जांतिका अधिक पवित्र तथा अपने आपका अधिक समझदार समझता है । इसी प्रकार कई अन्य पूवश्रह्द दोत हैं कि जो मनुष्यकों विवेक कर ने के लिये अयोग्य बना देते हैं । इललिये मनष्यक्षो उचित है कि बह इन पूत्र दुराप्रदोसे अपने आपको दूर रखे । यदद सबसे कठिन बात हैं परंतु इखके बिना यथार्थ विखार होना असंभव है और यथार्थ विचार करने के विना अभ्यद्य हाना सरवंधा असंभव हे । ज्ञो मद्दात्मा लोग होते हैं वे पूर्वध्रद्दोको दूर फेक देते हैं इसी लिये वस्तुस्थितिका ठीक प्रकार देख सकते और उन्नतिका मार्ग ढूंढ सकते हें। और अन्न जन पूर्कग्रददूषित होते हैं इसीलिये मददात्माओं को प्रारभमे अत्यंत कष्ट दात हैं परंतु अंतमें उनकी ही सर्वत्र पजा होती दे इसलिये प्रमाण प्रमेय चस्तस्थिति आदिका




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