गुरुदत्त लेखावली | Gurudatt Lekhawali
श्रेणी : धार्मिक / Religious, पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
28.92 MB
कुल पष्ठ :
329
श्रेणी :
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पं संतराम - Pt. Santram
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श्री गुरुदत्त - Shri Gurudatt
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)% पहले संस्करण की भूमिका % नाना हरि लि फैट्रके सा क-.... | जरेजी भाषा में आर्यय समाज का जितना साहित्य है उम्न में है पण्डित गुर्दत विद्यार्थी पम. ए. के ग्रन्थों का दरजा निस्स्- कि व न्देह स्व में पहला हे । विचार फी उच्चता भावों की शप्ता पके. बे) शली की सुन्दरता आर चार्ता रष्टि की विशाठता और कर थ | व्यापकता अधे की शक्ति और हृदयपग्राइकता की दृष्टि से वे ब अद्धितीय हैं। पण्डित गुरुदत्त उन विरले प्रतिभा दाली मनुष्यों मे से पक थे जिन पर प्रत्यफ सभ्यदेश यथाथ गये कर सकता हे । उनका युवाघस्था में ही देहान्त होगया । शोक हैं कि वे आय्य समाज की बहुत थोड़े काल तक सेवा कर सके । उनके अन्दर जिशासा ओर विपयके तत्व को पहुंचने की शमताएँ बहुत बढ़ी हुई थीं अतपव उनके अत्यन्त दाशनिक और यज्ञानिक मन को वेदिक घम्मे के सिवा और कोई घर्म्म सन्तुप्र नहीं कर सकता था । इस लिए ये स्वामी दयानन्द सरस्वती की सेना में भरती होकर वदिक धघम्म के प्रचार मे भारी दिलचस्पी दिखलाने लगे । परन्तु वदिक धघम्मे की सचाइयों ने उन के मन में अभी गहरी और स्थायी जड़ नहीं पकड़ी थी कि एक खेद्जनक घटना के कारण उन्ह परम योगी स्वामी दयानन्द सरस्वती के दर्शनों का अवसर मिला । जिस समय महदाप अजमेर मे सख्त बीमार पड़े थे तो लाहोर को आय्ये समाज ने मुझे और पण्डित जी को अपना प्रतिनिधि बनाकर स्वामी जी की सेवा- शुश्रूषा के लिए वहाँ मेजा । वहाँ उन्हें महपि का खत्यु-ददय देखने का स्वोभाग्य प्राप्त हुआ । इसी रृइय ने उन के सभी पुराने संशयों को दुर कर के उन के अन्दर वह भाव भर दिया जिस से क्रि उनका नाम सदा अमर वना रहेगा । उन्होंने देखा कि एक ओर तो भयानक रोग से ऐसी असहा पीड़ा हो रही हे कि बलवान से बलवान और वीर से वीर मनुष्य भी जिसे आध्यांत्मिक जगत का बहुत कम शान है इस के भयानक और क्रुर आक्रमणों से चिछा उठे और दूसरी ओर दुःस्व और अनुताप के किसी खिन्ह के थिना स्वामी जी का शान्त सानन्द प्रोढ़ और हँसता हुआ मुखमण्डल है। इस अद्धत इदृदय ने उन पर जादू का असर किया । इसका असर उन पर केसे इुआ यह शब्दों म बताया लीं जा सकता ओर न स्वयं पण्डित जी ही इसे स्पष्ट कर सकते थे । पसा ज्ञान पड़ता है कि इस ने उन की आत्मा पर पूर्ण अधिकार जमा लिया था
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