मानव यन्त्र | Manav Yantra

Manav Yantra by पं संतराम - Pt. Santram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(रन ) पासना की धार्मिक भावना तुम पर अपना धमुस्व जगा रही हैं। सुम्दारी शारीरिक 'अयस्था अपने श्वनुवूल भावना को उपस्थित किये बिना न रहेगी । अतः इस से कई मदत्वप्रण सिद्धांत प्रतिपादित किये जा सकते हैं । सर्वप्रथम यदद कि जिस प्रकार मन शरीर को प्रभावान्वित करने, में समर्थ दे उसी प्रपार शरीर भी मन पर श्रपना रंग जमा सफता दै. | शारीरिक परिवर्तनों से मानसिक परिवंतन हो सऊफते हूँ । इस कारण यदि हुम सिननता झनुमव कर रहे हो तो उस समय दोनों धार्था से सिर को थाम वर, सिकुड़ कर छुर्सी पर घड़े रदना लुम्दारे लिए तमिक भी हितफारी नहीं । ऐसे श्ववसर पर सुसकराना, शरीर के पढ़ें को हिलाना जुलाना श्रर्थात्र पीठ को सीधा करना, कन्धों को फैलाना इत्यादि और किल्ती श्वानन्दवधक काम में जुट जाना ही द्वितकारी सिद्ध होता है । *.. सिन्नावस्था की शारीरिक स्थिति चस्तुतः मानसिक पद का याहा स्वरूप दे | शत: उठो श्रीर जाकर जंगल में से कुछ. लकड़ियां (ईंधन की सामपी) क्राट लाथो, श्मपने उद्यान की सूमि को छुछ देर के लिये कुदाल से सोद देखो श्यवा लम्वी सैर के लिए घरसे दूर निकल जाझो। परन्तु जो घुछ भी करो, मन लगा कर करो । काम करते समय तुम्दारा मुख फूल के समान सिला हो, मस्तक पर चिन्ता की एक भी रेखा दिसाईन दे । ऐसे प्रतीत हो मानो हुम प्ररुति के आाह्ण में भोले शिशु के “समान




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