दक्षिण आफ्रिका में धर्मोदय | Dakshin Aafrika Me Dharmodaya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13.78 MB
कुल पष्ठ :
219
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं. नरदेव वेदालंकार - Pt. Nardev Vedalankar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(व) समाजके कार्योमें अपनी अमूल्य सेवाएं दी हैं उनकी संन्धि जीवनियां भी इसमें दी गई हैं । जिसमे भात्री संतति अपने पूवजोंके ज।वनसे शिक्षा ग्रहण कर सके । सबसे अन्तमें पुस्तकक विद्वान लेखक पे. नरदेव चेदालकारने उपसंहार में आपने विचार प्रकट किये हैं । वे यहांपर दा साल तक रह चुके हैं । इसमें उन्होंने अ थे संस्कृति भारतीय सभ्यता और हिन्दू जीवन परम्पराकी रन्ना के लिये एवं प्रगतिके लिये जो विचार उपस्थित किये हैं इम उनकी आर सभी पाठकोंका ध्यान खींचना चाइत हैं और चाहते हैं कि उनपर शीघ्र ते शीघ्र मल किया जाये । जिसमें इस देश में हम अपने घर्म आर जातिके गोरवका रखनी स्थापित कर सक॑ । इस इतिदासका जनताके दाथमें रखते हुए धम भी अपने अनुभवों के आधारपर निम्न लिखित बातांकी तरफ लागोंका ध्यान वाकर्पित करना चाहते हैं -- (१) प्रतिनिधि सभाके ध्न्तगंत एक या दो विद्वान प्रचारक पुरुप व्प्ौर स्त्री स्थायीरूपसे वेतन पर रख जावं । जिसके द्वारा सदा प्रचार काथ होता रहे । (२). सभामें सम्मिलित सस्थांका पूर्गा सहयाग दिया जाना चारटिये तथा उनका निरीन्नण होना चाहिये । सम्मिलित संस्था्यांका प्रगतिशील व्प्ौर उन्नत बनाना चाहिये । सस्था्ओंके कार्योमिं स्थानीय जनता कम रख लेती है । कई पाठ्शालाएं अभी कजसे मुक्त नहीं हो सकी हैं । ऐसे प्रयल होने चाहिये जिससे लोग उनमें अधिक रस लेने लगे ओर उनका अच्छा सइयाग प्राप्त हो सके । (३) सम्मिलित संस्थांकी उन्नति के लिये स्त्री समाज रात्री पाठशाला भजन मंडल वीर दल दि स्थापित करके कार्य को व्यापक बनाना चाहिये । (४) पोडश संस्कारोंके प्रचार श्र त्यौहारोंके मनानेपर जोर दिया जाना चाहिये । (४) दोनों समय पारिवारिक संध्या हवन तथा साप्ताइिक सत्संगपर
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