अभ्यास और वैराग्य | Abhyaas Aur Vairaagya

Abhyaas Aur Vairaagya by स्वामी ब्रह्ममुनि - Swami Brahma Muni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० अभ्यास श्रौर बेराग्य युवक --मेरी प्यारी सोमावती मर गई हाय उसके बिना नहीं रह सकता मैंने मरने को ठानी थी झ्रापने मुझ बचा लिया मुझे मरने क्यों ने दिया दुःख से छुटकारा हो जाता मेरी सोमावती को लादो। योगी --बच्चा कया तु यह समभता है कि तेरी सोमावती मर गई वह नहीं मरो क्या श्रात्महत्या से तू मर जाता । न मरता न हन्यते हन्यमाने दरीरे देख इस दीपक में बत्ती जल रही है वह अब छोटी सी रह गई है कुछ देर में यह ज्वाला न रहेगी (बत्ती जलकर मस्म हो गई ज्वाला व्योम में चलो गई योगी ने पूछा) क्या तुमे पता है वह शुभ्न ज्वाला कहां चली गई ? युवक--नहीं । योगी--वह नष्ट नहीं हुई इस श्रनन्त व्योम में चली गई। लो यह दूसरी बत्ती डालो श्रौर जलाओओ ( जलाते ही तुरन्त ज्वाला झ्रागई) देखा युवक वहीं ज्वाला पर दूसरी बत्ती में । पहिली बत्ती भस्म हो गई थी ज्वाला नष्ट नहीं हुई थी दूसरी बत्ती में श्रा गई । इसी प्रकार तुम्हारी सोमावती नष्ट नहीं हुई। वह अमर है दूसरी देह में चली गई । तू भी न मरता दूसरी देह में चला जाता । यदि तू अब दुःख भार को दिर पर उठाए हुए है तो दूसरी देह में भी उठाना पड़ेगा । भार उठाने से बचने का उपाय टोकरी को तोड़ डालना नहीं है वह तो दूसरी मिल जावेगी किन्तु उपाय तो भार उठाने की प्रवृत्ति को त्यांग देना है विवेकी व राग्य- वानु बनकर । फिर न कोई भारवाली टोकरी उठाने को कहेगा और न उसे उठाने की रुचि रहेगी ।. जुलाहा इस मानव देह का सबूपयोग




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