दक्षिण अफ्रीका की यात्रा तथा वैदिक धर्म प्रचार | Dakshind-a Aphriikaa Kii Yaatraa Tathaa Vaidik Dharma Prachar

Dakshind-a Aphriikaa Kii Yaatraa Tathaa Vaidik Dharma Prachar  by महता जैमिनी - Mehta Jaimini

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(६४ ) शुज- ती भाइयों ने अपने बच्चों की शिक्षा के लिये पाठ्लालाय खोला हुई हैं । चाके चाके में एक भ न झौर एक स्वेराती औष- धालय भी खोला हुआ है । यह नारियल और लॉग बढुत उत्पन्न होते हैं जो संसार भर में यहां से जाते हैं । यद्द द्वीप जब्ज्धीबार से ६० मील को दूरी पर दे ओर सुल्तान जब्ज़ीबार के आशधीन है । यहां भी हमारे ग़जराती व्यापारी लोग रहते हैं । सभी अच्छे स्मृद्धना। दी हैं । यहां पाइिले कोइ प्रचारक प्रचार करने नहीं आसा था | मैंने ९ व्य ख्यान इस द्वीप में छ कर दिये । डाक्टर दीनानाथ पडजाबी वै ी में और डाक्टर ग्तनचन्द पब्जाबी मकवानी के सरकारी अस्पतालों में डाक्टर हैं । १८ दिसम्बर को हम वहां से लौट कर जब्ज़ीबार आये। रात को फिर उपनिषद की कथा की । ?१ दिसम्बर को हम दारसलाम रवाना इये। १२ दिसम्बग को हम ३ बजे दोपहर को वहां पहुंच गये । रात्रि को श्रद्ध झाताबिद की सफलता पर व्याख्यान दियां जिसे जनता ने बहुत पसन्द किया । दारुसलाम में दूसरा व्याख्यान जो मेंने मार्त और अफ्रीका के प्राचीन सम्बन्ध पर रिया उसे वहां.की जनता ने उत्त्यन्त पसन्द किया | उस व्याख्यान पर समाचार पत्र टांगानीका ह्ेरल्ड ने निम्नलिखित लेख १५ दिसम्बर १९३३ के अड्ड में मुद्रित किया । 1 ७७ 8 छु8ए 5 प्र8 दिला कपनतेक्ड 1511 280 1288 कैट ड हि] 2६10115 कप). पाती &]82घाा कैच ही। ये 111 नए ऊ छछु170 110 0111. प्रा2क50 छोत्ाए6 1951. पपट5689 ध87 पे] 1ए6710 छ




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