राधा स्वामी मत और वैदिक धर्मं | Raadhaa Svaamii Mat Aur Vaidik Dharma

Raadhaa Svaamii Mat Aur Vaidik Dharma by लक्ष्मण - Lakshman

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ठ है। मन वा इन्द्रियों को वश में करना ग्रहस्थ को सुनियमित रूप से चलाकर सुख पाना विद्या की प्राप्ति त्र्मचय्य का पालन सन्तानोत्पत्ति शिक्तादि किंसी भी विपय में पथ प्रदशन करना तो कहां गुरु दी गुरु की पूजा में सब घरबार पति-पत्नि माता-पिता सास ससुर बाल बच्चा को तुच्छ बल्कि काला नाग समभक कर इनसे दूर होने अर्थात्‌ सारी मयादाओं को नष्ट करने का उपदेश अवश्य है । पाठक हेरान होंगे कि साहब जी महाराज तो स्कूल कालिज हस्पताल शू फेक्टरी लेदर फ़रेक्टरी बटन फ्ेक्टरी डेयरी फ़ाम क्लोथमिल इंलेक्रिक फ़ेन शापादि खोल रहे हैं. परन्तु विदित रहे कि यह सब कुछ पाश्चात्य शिक्षा का फल है अथवा आय्य समाज की सामाजिक उन्नति वा परोपकार सम्बन्धी स्पिरिट का बुरा या भला प्रभाव है राधा स्वामी मत की शिक्षा का फल नहीं श्मीर इन सब कामों में साहब जी महाराज को लगा हुआ देखकर स्पष्ट सिद्ध होता है कि वास्तव में साहब जी महाराज स्वयं परम गुरु राघा स्वामी साहब तथा अपने भूत पूव दूसरे गद्दी नशीनों के तरोके से पृणतः असन्तुष्ट हैं पर बनी बनाई गद्दी मिल जाने से विशेष प्रकार के लोभ का शिकार होकर आप दो बेड़ियों के मढाह बन रहे हैं। यदि आपके मन में विद्या तथा गृहस्थ सम्बन्धी राधा स्वामी तालीम से घृणा न होती तो आप कभी इन संस्थाओं तथा कारखानों के मंमट में न पड़ते । हमारी हादिक इच्छा हे कि साहब जी महाराज कुटिल नीति तथा एच पेंच वाली लेख वा भापण शेली आदि को त्याग कर सरलता से काम लेना सीखें शरीर न केवल एक तुच्छ गद्दी वा सार सांसारिक प्रतिध्ठा वा कीति आदि से आपको बैराग्य हो




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