विष्णु प्रभाकर का कहानी साहित्य | Vishnu Prabhakar Ka Kahani Sahitya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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16 / विष्णु प्रभाकर का कहानी साहित्य द्वारा नई कहानियों में लिखी गई संपादकीय टिप्पणियों तक सीमित रहा। इसमें केवल सहज कथा की सहज अभिव्यक्ति पर ही बल दिया गया। समांतर कहानी आंदोलन आठवें दशक में प्रारंभ हुआ। इसका सूत्रपात कमलेश्वर जी ने १६६२ के आस-पास सारिका पत्रिका के लिए लिखी जाने वाली संपादकीय टिप्पणियों मे किया। कहानी की मूल संवेदना सामान्य जन के संघर्ष से संबद्ध है तथापि पारिवारिक स्तर पर श्रद्धा सम्मान सहानुभूति जैसे विघटन को भी उसने संपादित किया है। कहने का तात्पर्य यह है कि समांतर कहानी ने व्यक्ति की असहायता नैतिक-संकट मूल्यहीनता तथा विघटन को समग्र सामाजिक तंत्र के परिप्रेक्ष्य में देखा है। कामतानाथ की अंतेष्टि कमलेश्वर की जोखीम दिनेश पालीवाल की दुश्मन प्रभुनाथ सिंह की कुछ कदमों का फासला मधुकर सिंह की भाई का जख्म आदि कहानियों में आम आदमी के संघर्ष के साथ-समग्र सामाजिक तंत्र को कुशलतापूर्वक उभारा गया है। इस प्रकार समान्तर कहानी का फलक सामान्यजन तथा उसका व्यापक सामाजिक संघर्ष है। समांतर कहानी आंदोलन अपनी सीमित दृष्टि और कृत्रिम वैचारिकता के कारण शीघ्र ही समाप्त हो गया। आठवें दशक के उत्त्तरार्ध में कहानी के क्षितिज पर चतुर्थ उन्मेष में दो आंदोलन उभरे जिनका सूत्रपात जनवादी कहानी और सक्रिय कहानी में हुआ। हिंदी साहित्य में जनवादी आंदोलन प्रगतिशील आन्दोलन का ही विकर्सित रूप है। जनवाद का जन्म सामंतवाद के विरुद्ध संघर्ष करते पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के उदय के साथ हुआ। जनवाद का नेतृत्व सर्वहारा के हाथ में होता है और वह समाज में सभी प्रकार के शोषण को समाप्त करने के लिए है। जनवादी कहानी-आंदोलन समूचे जनवादी आंदोलन से जुडा हुआ है। जनवादी कहानी के केंद्र में निम्न मध्यवर्ग का संघर्ष है किंतु यह संघर्ष वास्तविक जीवन का है उसका वैचारिक आधार मार्क्सवाद है। यशपाल की परदा रांगेय राघव की गदल भीष्म साहनी की चीफ की दावत अमरकांत की दोपहर का भोजन आदि कहानियों से जनवादी कहानी की परंपरा नई कहानी के दौर में समृद्ध हुई । जनवादी कहानी ने अपने आस-पास की दुनिया से अपना सच्चा रिश्ता स्थापित किया। सक्रिय कहानी आंदोलन के सूत्रपाप्त का श्रेय मंच के संपादक श्री राकेश वत्स को है। राकेश वत्स सक्रिय कहानी को चेतनात्मक ऊर्जा और जीवंतता की कहानी मानते हैं। इस दृष्टि से देखा जाए तो सक्रिय कहानी समग्र और अहसास की कहानी जो आदमी की बेबसी निहत्थेपन से अलग कर स्वयं अपने अंदर की कमजोरियों के खिलाफ खडा होने के लिए तैयार करने की जिम्मेदारी अपने सिर पर लेती है। इस प्रकार वह व्यक्तिवादी दानवी प्रवृत्तियों का विरोध करते हुए मानवीय मूल्यों की स्थापना पर बल देती है। कुमार संभव की आखिरी मोड़ राकेश वत्स की काले पेड धीरेन्द्र अस्थाना की लोग




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