चयनात्मक हिंदी ड्यूई दशमलव वर्गीकरण एवं सापेक्षिक अनुक्रमणिका | Chayanatmak Hindi Dayui Dashmalav Evm Sapekshik Anukrmnik

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Chayanatmak Hindi Dayui Dashmalav Evm Sapekshik Anukrmnik  by प्रभुनारायण गौड़ - Prabhu Narayan Gaur

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हिंदी डयूई दशमलव वर्गीकरण इसीलिए उनका प्रयोग सार्वभौम रूप से किया जाता है। तो हम एकमात्र इन्हीं अंकों का प्रयोग क्यों न कर? की इयई ने दशमलव प्रणाली का श्रारंभिक प्रारूप बाईस वर्ष की उम्र में जबकि वे ऐमहस्टे कॉलेज में केवल एक विद्यार्थी थे सन्‌ 1873 में प्रस्वुत किया । इस प्रसंग में एक उल्लखनोय बात यह है कि उस समय यूनाइटेड स्टेट्स के पुस्तकालय भी उसी प्रकार भ्रव्यवस्थित दशा में थे जिसमें श्राज हम श्रपने देश के पुस्तकालयों को पाते हें। कुछ पुस्तकालयों में पुस्तकों उनके झ्राकार के श्रनुसार कुछ में उनके भ्रनवण झ्राख्या के श्राधार पर श्रौर कुछ में तो उनके जिल्द के रंग के भ्रनसार व्यवस्थित की जाती थीं। बिरले ही किसी पुस्तकालय में पुस्तकें प्रपने प्रंतविषय अथवा विषयों के शंतसंबंध के आधार पर विन्यसित की जाती थीं । यदि किसी पुस्तकालय में पुस्तकों के वर्गीकरण श्रथवा विन्यसन के लिए कोई वैज्ञानिक पद्धति श्रपनाई भी जाती थी तो वह पद्धति केवल उसी पुस्तकालय तक सीमित रहती थी भ्रन्य पुस्तकालयों में उसका कोई व्यापक प्रयोग नहीं होता था । 15 फरवरी 1920 के लाइब्रेरी जनेल के श्रंक में ड्यई ने भ्रपना एक लेख प्रकाशित किया जिसके द्वारा हमलोगों को यह ठीक-ठीक पता चलता है कि उन्होंने 1870 के बाद दशमलव-प्रणाली का श्रन्वेषण कब क्यों श्र कंसे किया । वे लिखते हें - मेने लगभग पचास पुस्तकालयों का निरीक्षण किया श्रौर में यह देखकर हैरान हो गया कि उनमें पुस्तकों को कमर श्रल्मारियों भ्ौर निलयों के श्रर्थात जहाँ वे रखी जाती थीं उन्हीं स्थानों के भ्राधार पर श्रंकित किया जाता था न कि उनके श्रंतविषय के आधार पर जो कि उनके श्रंकन का चिरस्थायी रूप हो सकता है । पुस्तकों को उनकी तत्कालिक स्थिति के भ्रनुसार झ्रंकित करने से संग्रह में वृद्धि झ्रथवा पुस्तकों के स्थानांतरण के कारण बारंबार सूचीकरण श्रौर श्रंक-परिवत्तेन करना प्रावश्यक होता था जिससे कि पुस्तकालय की व्यवस्था में निरंतर गड़बड़ी होती रहती थी श्रौर इस तरह निरंतर फर-बदल करते रहने से समय श्रौर धन का भ्रपव्यय भी होता था । श्ौर फिर स्पष्टत एक ही पुस्तक के वर्गीकरण के लिए किसी सामहिक श्र केंद्रित प्रयास पर निर्धारित एक ही मानक प्रणाली का भ्रनुसरण करने के बजाय उन हज़ारों पुस्तकालयों में हज़ार बार शअलग-भ्रलग वर्गेकारों के श्रम का कितना झ्रसंयत श्रौर विवेकहीन भ्रपव्यय होता था महीनों-महीनों में दिन- रात यह स्वप्न देखता रहा कि इस समस्या का कहीं सन्तोषप्रद समाधान अवश्य मिलेगा । भविष्य में हज़ारों इस तरह के पुस्तकालय होंगे जिनमें श्रधिकतर ऐसे ही व्यक्ति काम करेंगे जिन्हें किसी प्रकार को प्राविधिक कुशलता श्रथवा प्रशिक्षण नहीं ही के बराबर होगा। इसलिए इस काल्पनिक प्रणाली का पहला गुण होना चाहिए उसकी अधिकतम सरलता । यानी इतना सरल जितना कि वर्णक्षर पर 0 । कितु उससे भी सरल है गणित के ध्रंक 1 2 3 । महीनों तक में इस सिद्धांत पर॑ चिंतन शभ्रौर श्रध्ययन करता रहा । श्रंततोगत्वा एक रविवार को कॉलेज में प्रेसिडेंट स्तन्सं प्रवचन दे रहे थे। में उनकी श्रोर टकटकी लगाए ही




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