मराठो का इतिहास | Maratho Ka Itihas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१९ ) के कारण शीघ्र हो सरदार की पद्वी पा सका--वदिक इतना हो नहीं वह राजसिंद का स्नेद-भाजन घन कर अधिकाधिक सम्मान भी पाने लगा । उधर उदयभानु यह देस कर मन-द्दी-मन सुलसने लगा 1 इस अ्रकार किसी तरदद भी यश प्राप्त करना असभय देस उसने कपट-नाटफ रचना चाहा शार महाराज राजसिद्द के शत्रुओं का साथ देने का विचार किया | औरगजेव हृदय से चाहता था कि राजसिह का तथा उनके वश का पटद लित करें परन्तु राजसिंद रमे-वैसे पुरुष न थे । जिस तरह कि राजसिह को अपने ्राधीन करने की और गर्व की उप्कट इच्छा थी उसी त्तरद राजसिह की भी यद्दू चत्कट इच्छा थी कि श्रपने सब जाति-माइयों को मिला कर श्औौरगजेव के सताएँ या मुगल साम्राज्य का हिन्दुस्तान स भूलो- च्छेद करडें । औरगजेम के उपाय कभी सरल न दोत । कपट-नीति का अवरायन कर वह अपने हेतु की सिद्धि प्राप्त करने का प्रयत्न करता या । उसी के ्नुसार इस समय भी उसने अपना उपक्रम मारभ क्या । साजसिद्द के राज्य के भीतर चालावी श्र फितूर से फूट डालने के लिए अपने प्रयत्न शुरू कर टिए । फल यदद हुआ कि चदयभाजु के रूप में उसे एक साधन मिल गया । कहने की आवश्य- कता नहीं कि औरगऊेव के निकट उसका महत्व खूब चढ़ा । इस मददस्व बृद्धि के कारण अथवा किसी दूसरे कारण से उन्यभानु मदोन्मत्त हो गया । उसके इन श्याचरणो के देख कर राजसिह का शका हुई और उत्दोने उसे झपने राय्य से निकाल त्या। चास्तव में उचित तो यद्दी था कि उसका सिर क्टवा लिया जाता परन्तु भाग्य के जोर से शिरच्छेद के स्थान में उसे निप्फासन का दी दण्ड मिला ।




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