रहस्य नामा | Rahasiya Naama

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Rahasiya Naama by मदनलाल 'मधु' - Madanlal 'Madhu'योगेन्द्र - Yogendra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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थे लेकिन उससे सामना होने पर भुककर सलाम करते थे और दादी मा कहकर पुकारते थे। उसकी ऐसी इज्जत का एक कारण यह भी था कि एक वार उसके एक पड़ोसी को पुलिस में शिकायत करने की सूक पड़ी थी। उमने लिखा कि लाफेतोवो की नानवाईन ताश और कहने के दानों की मदद में किस्मत वूभने का अवैध धंधा करती ही यहीं नहीं उमके यहां सदिग्ध लोगों का आना-जाना है। अगले दिन एक पुलिमवाला बुढिया के घर आ पहुंचा अदर जाकर वडी देर तक तलाणी लेता रहा और आख़िर बाहर आकर वोला कि उसे कुछ नहीं मिला। न जाने दादी मा ने अपने वेकसूर होने का क्या सबूत दिया वैसे इससे फर्क भी क्या पड़ता है वम आरोप भूंठा पाया गया। भाग्य ही वेचारी नानवाईन का साथ दे रहा लगता था। कुछ हो दिन वाद उस पडोमी का चुस्त-फुर्तीला लड़का आगन में खेलते- खेलते एक कील पर गिर पडा और उसकी आख फूट गयी फिर उसकी घरवाली का अचानक पाव फिसल गया और उसे मोच आ गयी। लेकिन उसकी विपदाओ का इतने पर ही अत नहीं हुआ उसकी सवसे अच्छी गाय जो पहले कभी वीमार नहीं पड़ी थी एकाएक ही मर गयी। हताथ पड़ोसी ने बडी मुद्किल मे रो-धोकर और भेट चढाकर बुढ़िया का प्रकोप शात किया -तव से सभी पड़ोसी उसे उचित आदर-सम्मात देने लगे थे। जो लोग मकान वदलकर लाफेतोवों से टूर कही जैमे कि प्रेस्नेतस्की ताल पर ख्रामोव्निकी या प्यात्नित्स्कया मोहल्वों में जा बसते थे वे ही नानवाईन को खुलकर चुडैल कहने की हिम्मत कर पाते थे। वे तो यह वात अपनी आखों देखी वताते थे कि अघेरी रातों में दोलो-्सी दहकती आखोवाला काला काग वुढिया की छत पर आता है। कुछ लोग तो कसम खाकर यह भी कहते थे कि वुढ़िया का काला विल्‍ला जो रोज़ाना सुवह उसे फाटक तक छोड़ने आता था और शाम को फाटक पर खड़ा उसके लौटने का इतजार करता था और कोई नहीं शैतान ही है। ये अफवाहे उडती-उड़ती ओनुफ़िच तक भी पहुच ही गयी। उसका पेथा ही ऐसा था कि बहुत से घरों की ड्योढ़ी मे वह आ-जा सकता था। ओनुफ़िच धर्मभीरु व्यक्ति था और इस विचार से कि उसकी सगी फूफी ने चैतान से नाता जोड़ लिया है उमकी आत्मा दुखी हो उठी। बड़ी देर तक वह यह तय नहीं कर पाया कि करे तो क्या करे 15




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