मदर - इण्डिया | Mother - India

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिरा हुये लाहे के योले क समान धरती की श्रोर ट्रद पडता हे श्योर ब्पनी मनोफामना पाकर जिस रस जिस स्वाद जिस सोचकता के साथ उसके डुगन्घप्ण गोश्त जोर सडे हुये रग पुद्ठीं को नाच नोच के ग्याता है इसी प्रकार मदर इण्डिया की जननी ने श्रपनी विरादरी चालों से प्ोत्साइन खेफर मारत की कटिपत तथा चास्तविफ उगामय सम्याश्ो को ढ़ढ ढू ढ कर भयानक श्र पिचिश्न रसिकता फे साथ चर्णित फिया है | यह सेलानी ऊमारी श्रमेरिका से उडकर इट्लैरट होती _ हुई भारतीय श्राकाश में था मंडलाई | गोकि इस प्राचीन देश में पाच लाख मस्जिद श्रौर मंदिसे से कम न होंगे परन्तु फलफत्ते के ग्यममेन्ट होस की छत शऔर दियारेा को पार करती टई सीधी/कालोघा म काली माई के सदिर पर जा डरठी । भारत के पाच लाख मटिर मसजिदा मे शायर यही मदिर ऐसा हैं जद्दा प्रति दिन जीचित पशुत्रों की भेंट चढाई जाती है। इपर उधर देखती हुई मिस मेयों चेदी के पास परुच राई और ये उसका यर्णन इस प्रद्वार देती हैं। -- पकाण्क हुया को चीरतों हद एक लेच चेदनायुर्ण श्ावाज पकरी ् मिमियाने की सुनाई दी। इम मन्दिर के कोने से घमरूर ट्रसरी शोर पक खुले सहन में पहुंचे । य्दाँ पर दो पुरोड्ति सड़े हुए थे । एक के द्वाध में एक सुडी टुई सद्ग थी । दूसरा एक यकरी के बच्च को पफडे हुए घा । पकरी हा यच्चा चिटाया चर्योफि चहा की हया में चह झ्ड




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