नागरी प्रचारिणी पत्रिका त्रैमासिक | Nagaripracharini Patrika Tremasik

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सुवर्यद्वौप के शैलेंद्र सम्रादू और नालंदा र५१ तस्वान्तस्य नरेन्द्रडन्दविनमत्पादारविन्दासन सर्वपे्यीपतिगब्व॑खर्वशचण श्रीवालपुनोइमवत्‌ ॥ ३१ नालन्दागुणइन्दलुन्चमनसा भक्त्या च शौद्धोदने बुंदुवा शैलरित्तरज्तरला लदमीमिमा चोभनामू ) यस्तेनान्नतसौघघामघवल रुद्वार्थमिन शिया नानासदूगुणुमिल्ुख्धवसतिस्तरपा विहार कृत | दर] भक्या तत्र समस्तशतुवनितावैघव्यदीक्षागुद कृत्वा शासनमाहितादर्तया सम्परार्थ्य दूतैरसी । आमान्पश्न विप्धितेपरि यथेाद शानियामात्मन पित्रोह्लॉकदितोदयाय च ददी श्रीदेवपाल चपम ॥| ३३ यावत्तिन्धो प्रमन्ध प्रथुलदरजटाछषोमिताज़ञा व गन्ना गुर्वीं घत्ते फणीन्द्र प्रतिदिनमचलों देलया यावदुर्वाम्‌ । यावच्चास्तोदयाद्री रवितुरगखुराद्घूष्टचूडा मणीस्त- स्तापत्सफकीत्तिरिपा प्रममठ जगना सहिकिया रेपपन्ती | २४] झनुवाद--सुवर्णट्वीप ( सुमात्रा ) के शासक मद्दाराज श्री बालपुत्रदेव ने दूत के द्वारा हम लोगो का यदद सदेश मेजा है कि मैंने नालदा में एक विद्दार का निर्माण कराया है । इस शासनपत्र के द्वारा इसकी छाय भगवान्‌ चुद्ध की पूजा के लिये मज्ञापारमिता के सदश सपूर्ण सदूगुणो से युक्त विद्वानों के पूजन के लिये और वहाँ के बोधिसच्वगण के झाठ मद्दापुरुपों की पूजा के लिये तथा चातुर्दिश भिक्ुसंघ के बलि वन पूजन वस्न मिक्षां शयन- आसन तथा रोगियों की चिकित्सा के लिये धर्म-रल्न ाद़िं फे लिसने के लिये एव बिद्दार की दूट-फूट की मरम्मत करने के लिये इम लोगों के देश दिया गया है । शछोका का साराश -(२४) यवमूमि (जावा) का शासक शैलेंद्र वंश का सत्र अपने नाम के अनुरूप प्रबल शत्रुश्तों का विध्व॑सरू सारे सपति- समाज का सिएमौर था । ( ५ ) उसका यश सारे संसार से व्याप्त हे गया था | ( ९६) इसके पराक्रम के भय से शयु कपित थे |




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