हिंदी विश्व कोष भाग 18 | Hindi Vishvkosh Bhag 18

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Hindi Vishvkosh Bhag 18  by नगेन्द्र नाथ वाशु - Nagendra Nath Vashu

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about नगेन्द्रनाथ बसु - Nagendranath Basu

Add Infomation AboutNagendranath Basu

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
मुद्रा दद्धिपी -दोगों इयेसियोंसे मूमिंठल अवत्तम्यन करफे | दोनों पैर ऊपरकों सौर मस्तक शुन्य रखो । भपनी शक्ति | का उपचय सौर दीए जोषग प्राप्त करमेके लिए मुनियों ने इस मुददाके मम्यास करमैका उपदेश दिया हैं। इसके । अम्पाससे योगिपोंशी स्पयिघ दिंतसिद्धि भौं मुक्ति तू होती दै। शक्तिपासिगी--सारमशस्थि .. परमदेधी कुण्डषठी सुवकलिलीके मूसाघार पर शपन करती हैं। कद तू ये | शरीरक मौतर निदापस्याग हैं तब तक शोप पशुक्त । समान है। इठार पोग करने पर मी उसके श्रानोदय | नहीं दोता । सहसा कपाट लोलमेके समान कुश्डसिनी प्रबोपत द्वारा ब्रइद्धार उद्घाटन किया शाता है। इस कार्येमें शक्तिशासिंगों मुदाको सादश्यकता है। सबसे छिप कर किसो पक्र यु गदमें समन सवस्पामे रद कर एक वरख्लएड द्वारा लामिदेश स वेित करना घादिये । डक्त बय्लएड पक्ष घिसम्त घम्दा चार सगुर डा तथा सूवुल पद सोर सूशष्म होगा आादिये। इसके बाद करिसूमथैएन सौर मस्म ट्वारा । शरीर छिस करके सिद्धासम पर सेठ कर भासा ज्ञारा वायु सा्कर्षण करके. डोरसे झपानमे पोशम करना । बादिये। शब तफ सुपुम्यामें मा कर पायु प्रकूर | न दो तब तठरू वद््पपाण सश्धिपी मय द्वारा | घोीरे घीरे शुहादेश साइुआन करना उसित है। | इसकं बाद यायुरोप पूपक चुम्मक तथा कुम्मफके फससे उसी समय भुंद्टिनी रूदस्यास हो कर ऊद्दप्यंपय मव सम्बन करैगो इसोछा माम शक्तिलाठगी सुदा है । इसके बिगा योनिमुद्रा सिद्ध नहोँ दोती । योनिमुद्रा भम्पाससे जम सरण सादि पर विज्ञय प्राप्त कर झनापास सिद्धि प्राप्त ोता है। ताड़ागो-टव्रको पश्चिमोसात करके शड्ागारति करना । इससे शरायत्यु दूर दोती दै। माण्डुशी-सु द मू द कर जिद्दा चदाना मोर पीरे पोरे सहसार निन्सत समूत प्रइप्प करना । इसके सम्पास से स्थिग्पीपन प्राप्त दोता भीर बलीपछित तथा केश पक्षथता भादि दंदिरू पिरति महों ोती । शाम्मतों --मैलाजतसमाघोधपलपूपक सारमारामिका निरीक्षण बरगा ।. यदद मुद्दा कुलपपूछें समात गोपनोप श्शे है। सो इस मुदाकों ज्ञातने हैं वे प्र्मा विष्णु भींर शिषमय हुमा करते हैं । दूर्वों पाच्च घारणामुद्रा यथा--पा्िधों साम्मसो। सामयी बापवी सौर आकाो । पोर्थियो-हरितारू-रकित सौम सकारास्पित सतुर्झोप्प तस्वपदार्थकों ध्रद्मा सदित इदपमें स्थिर फरके उसमें पांच भटे तक प्रार्थोंको बिनयन पूर्यक धारणा करमा चाहिए । इससे सिति जय मीर सूत्युवय हो कर सिद्धि प्राप्त होती है। भाम्मसो-शह्मू इस्दु सौर बुम्दके समान घपस पीयूपमय वक्ारबोशके साथ समेदा विष्यु-मभिष्ित शुभ जसतत्त्में पांच पएटे तक प्रार्थोका थिमयत पूर्वक भारण करो । इससे दुग्सह ठाप दूर होता समीर पोर गमीर शखमें मा कमी सूत्यु बहदों ोती । पद्द शोपलीय । है प्रकट बरनैसे सिसिमें हानि होती दि। झाम्नेपी हो इस्दरगोपक्ते समान लिकीणास्पित तेज |. मय प्रवोप-तत्त्द रुद्रके साथ नामिदेश्म सपस्पित है उसमें पाँच घदर तक प्रा्थोंका विलय पूर्वक धारण करतो थाइिए। इसके सम्पाससे मीपप काछमय दूर होता सौर प्रश्यद्धित भम्तिमें सी साथककी सूत्यु नहीं होतो । थायषी--सिद्ाजगनिम सौर साथ हो धूघाम पफ्ार सदिठ ईश्वराधिप्लित सत्वमप छो तत्त्व है उसमें पांच घष्टे तक प्राणोका घारप करमा धायषो मुद्दा है। इससे पोगी साकाश-गममगमें समये होता लीर हसकी सूत्यु व हो शाती दै। मक्तिद्दीन शठ भीर कपरी श्यछ्टिके सामने इसे प्रकर न करना चघादिए | आ्राकाशी--हकार-बीज़में सस्वित सदाशिय द्वारा सपिछित भौर सुनिर्म्न सापण्क शछक समात जो परम म्योमतत्त्थ है इसमें पांच घंटे तऊ प्रापोंफी यितयत पूर्वक धारणा करो । इसके सम्पाससे सूरयुक्ता नाश झौर प्रसपकासमें मी उसके शरीरमें सपसाव भद्दों होता | अम्विगीमुदा -गुदद्वारका . पुमाः पुन झाकुआन भीर प्रसारण । इसके भम्पाससे गुह्ारोग भीर भार मरप्पक्का माश होता दे।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now