कुर्म वंश यश प्रकाश | Kuram Vansh Yash Prakash

Kuram Vansh Yash Prakash by महताब चंद्रजी - Mahatva Chandraji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८ लावारासा आ कर अमीरखाकों घेर लिया। फिर अग्रेजी सरकारने अमीरखाकों टोंक आदि दिला कर उसे नवाव बना दिया। कुछ दिनो वाद अमीरखांका देहान्त हो गया। अब टोकका स्वामी उसका पुत्र वजीरउद्दौला हुआ। टॉंककी सीमा पर उणियारा एक ठिकाणा है। वहाँके स्वामीका भी स्वर्गवास हो गया। उनके स्थान पर फतहसिह वहेंके स्वामी हुए। स्वगंवासी उणियारे नरेशने बभोरका किला अपने दुसरे पुत्रकों दिया था।. उसने आपसी झगडेसे वह किला टोक वाठोको दे दिया। जब यह किला टोंक वालोके हाथमे आ गया तब उणियारे वालोकी कुछ और जमीन भी अपने अधिकारमे कर ली। जब यह बात फतहर्सिहकों ज्ञात हुई तो उसने अपने सिपाही वहीँ भेजे। इस स्थान पर एक छोटा युद्ध हो गया जिसमें २० व्यक्ति मुसलमानोके मारे गये और बाकीके भाग गये। वजीरउद्दौलाको जब यह समाचार ज्ञात हुआ तो उसने एक सेना उणियारेकी ओर भेजी । उस सेनाने वहाँ जा कर बहुत उत्पात किया। फतहर्सिहने भी मुसलमानी सेनाको दबानेंके लिये अपनी सेना भेजी । कई दिन तक घमासान युद्ध चलता रहा। अंतमें मुसलमानी सेनाके पाव॒ उखड़ गये और वे युद्धस्थल छोड़ कर टोक भाग गये। ९३ पैचम प्रसंग - द्वितीय छावा-युद्ध द्वितीय लावा-युद्के समय लावाके स्वामी क्णसिह थे । एक समय भावनगरका एक पहलवान टोंकमें आया । नवाव वजीरउद्दौलाने उसका बहुत सम्मान किया और उसे अपना उस्ताद वना लिया। जब वह जाने लगा तो नवावने उसे बहुत द्रव्य आदि भेटमे दिये। जव वह पहलवान टोकसे विदा हो कर जा रहा था उस समय आगे आ कर मार्ग भूल गया और वह अपने साथियों सहित लावाकी ओर आ निकला । वह लावाके बाहर तालाबके किनारे महादेवके मदिरके पास ठहरा । प्रात.कालका समय था लावाका कोई राजपुत सुभट महादेवकी पूजन करनेको आया था। उसने महादेवकी पूजन की और गाल वजा कर स्तुति करने लगा। उसके कपोलोकी आवाज उस पहलवानने बाहरसे सुनी और सुनकर वह जूते पहिने हुए ही मंदिरमे प्रवेश करने लगा उसको कई व्यक्तियोने अदर जानेंसे रोका परन्तु वह उन्मत्त नहीं रुका। अदर जाने पर उस सुभटने भी पहलवानकों निकालना चाहा उस पर दोनो ओरसे तरवारे निकल पड़ी । एक छोटा-सा युद्ध हो गया सम्पूर्ण देवालय रक्‍तसे रंग गया। वह पहलवान अपने साथियों सहित मारा गया। एक छोटा लड़का बचा वह भाग कर रोता-रोता नवावके पास आया और उसने सम्पूर्ण कथा सुनाई। इस पर नवाव बहुत कुद्ध हुआ और उसने लावा पर चढाई करनेकी आज्ञा दे दी। इस पर स्वरगंवासी नवाब्रके नाचाने उसे बहुत समझाया किन्तु उसने एक भी नहीं सुनी और अपनी सेना ले कर लावा पर चढ़ाई कर दी । वनास नदीके किनारे अपने डेरे डाले। इस युद्धमे नवावके साथ जावरे भावनगर आदिकी भी सेना थी। लावाके स्वामी कर्णसिंहने भी प्रतिकारका प्रबंध किया। इस पुद्धमे फतटसिह उणियारेसे हनुमंतरसिंह योरासे भारतसिंह लदानेसे और चोरू महर्‌याके




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