पूर्ण प्रकाश | Purn Prakash

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Purn Prakash by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कनम्परानिधादददददररददादददददेकसियदयदेदयदेक नागवगवययदमाशवययदव्वदयययद ये सस्िददयशम्यददम या यवययाय बाय धययलययययाययययाययममण ( ९9 ) पथ ने सोएन कोई भी भ्रसुख नहीं था ० किन्त, पिछली रात आंख की दरद से नींद खुल गई०लागकर देखा कि अब भांख खोख कर नहीं देख सकते हैं० शिसौ भांति वह रात मोतो* ढूसरे दिवस रकतर को बु्ताकर फिर भांख द्खिसाया+ डाकतर दृखकर बोला, “यह आग पूर्व की भांति नहीं होगी किन्तु दूमरो भांख वे अच्छी हो शायगो० डाकतर को बात भझुनकर सन्दि- रानन्द रोने सगे+ मधुरिमा भी उसको देखकर रोने शगी* पीछे छाकतर दो चार सान्तवगा बायय कइकर चला गया» मन्दि- रागन्दु राते रोते बोग्ता, “इतने दिग पौछे भर्न्य इए० अब कुछ दीं देख सकेंगें० उस समय इसने तुम्हारो गाता व्यों नहीं मानी मधुरिमा गाढ़ स्तर योग्तो, “यह वारा स्मरण करके रोगे मे सब पया गा १ अट्प्ट में शी था सो 'ुभना« ” मन्द्रिगन्द बंले० “नहीं मधुरिगा तुझारी बात से सान- कर सब फोई कार्य इमने किया है छमसां कोई से कोई भरिटट भा हो है « तुम शिष्या अइ्टप्ट का दोप देती इो यह सब चमा- था दोप है« गधुरिमा रस्दिरिनस्ट के विछीने के पास वेठकर अं दल मे मकी भंखे पोक कर बोलो, “पट में लिखा था इसी से तुमने हमारी वात नहीं झुनौ« भट्ट को लिपि किसी प्रकार थे मद्दीं मिटतो” मधुरिमा को बात सुनकर मन्दिरानन्द कुछ देर चुप रइकर दें ले, समदुतरमा दया इसको अब छुद भी नहीं दिखाई खर ह ह नएए।।एगसएतल्‍एए एल




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