हिंदी विश्व कोश भाग 15 | Hindi Vishvkosh Bhag 15

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Hindi Vishvkosh Bhag 15 by नगेन्द्र नाथ वाशु - Nagendra Nath Vashu

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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म्रत्यमाव-मंम मय शरीरमें अर्थात आातिवादिक भावदेहमें सुखदु खका भीग करना होंगा। यह सोग सयप्रमोगकी तरह अस्पषट ह। स्वप्न थौर सायनामय दो । सूत्युवारमें जिस 1 माययी सुपूर्सि होगी यदद भाव प्रवठ हो कर उसे तदचु | रूप गति प्रटान करता है । जोयके मुमूर्प होनेसे लोग उसके का्ममे रिप्णुशा नाम इस रिये सुनांते हैं कि इस समय भी उसके मनसा भाव ईश्वरकी शोर जाय । परन्तु इससे फोई पर पामेकी सम्मायना नहीं । चैतन्य प्रति विस्त्ित सुदमदेद कथित प्रकारसे पाट्कौपिक शरीरसे निकल फर पदले आतियादिकर शरोरमें आकाशस्थित शआलम्वनददीन धायुमूत और आाश्रयशृन्य मयस्थारों श्राप दोती हो । पोडे. यथाकालमें . जस्मग्रदण करती हि । जो भत्यत पापाचारी हैं वे मरनेके वाद इस बृथ्यी पर आातियाहिव शरीरमें छुछ दिन रद कर पीछे सम प्रधान पूक्ष-लतादि जद सहित प्रदण करते हैं। जो ऋषि तपस्वी और शानों हैं थे देययानपथसे ऊदु्ध्वलोक गामी हो कर धीरे घोरे श्रह्मटोकर्मे जा उत्पन्न होते हैं | जो सत्वमंनिष्ट हैं चे पित्यानपथसी ऊदु्ध्नगामी हो पित शोकमें ज्ञा कर जन्म ऐेते हैं । अनन्तर सुखमोगफे वाद वे पुन पितृयानपंथसे इदलोवमि उनरते और अपने कर्मानु सार मानयशरीर पाते हैं। जो मजुप्य पशुणरीर पाता है उसे छाकाशमें ऐप्वी पर पीछे पार्थियरसफे साथ ग्रास्यादिके मध्य उसके वाद ग्यायरुपमें मजुग्य वा अन्य फ्सो जीवके घरोरमें छुड दिन रदना पड़ता दै। मुशरीरमें प्रधेश फरनेसे रसरकादि फ्रमसे शुनधघातुमें और स्रोगरोरमें प्रयेश फरनेसे आत्तयरक्तमें अयस्थान करता है। थनन्तर घदद स्रीपुरपसंयोगके उपलब्यमें गर्भयन्तमें मिट हो फर पाट्कौपिक देद पाता है । जीच याद्यके साथ जिस शरीरमें प्रवेश करता है उस समय उसे उसी शरीरके अनुरुप सस्कार होता है। जो पहले मानयदेहर्म था कर्मकी प्रेरणासे यह यदि वानर्योनिमें उत्पन्न हुआ हो तो बानययरीरमें प्रयेश करते हो उसया मानयोच्ित सस्कार जाता रहता दे और थानसेचित संश्कारका सशार दोता है । पुृर्नीब सयोगसे घोय गर्मम प्रपिष्ठ दोता है । पीछे मन पमस्थ देददी नवम या दशममासमें भट्टुमस्याड्रादिका | भी ४ ढ श्श पुष्टि माय लाख फ्ररके प्रवठ ध्रसवबायु द्वारा धनुमु क्त बाणकी तर योनिखिटसे वाहर निकल आाता है । योगशाय्यमें लिखा है --अप्म मासमें लव मनका प्रादुर्माय होता है तमभीसे ले कर जब तक भूमिष्ठ नहीं होता तव तक जीय पूर्यजन्सका घुत्तान्त स्मरण शीर गर्भायासकी फ्ठोर य त्रणाका अजुभय फरके हू था पाता रहता है। चदद घेचारा फया परे मुप जरायुसे आच्ठनन है करठ कफपूर्ण टै पायुका पथ निरुद्ध है इत्यादि कारणों से वह रोदनादि नहीं कर सस्ता । सुतरा पूर्वाजुभूत नाना जन्मरी नाना प्रकारकी यन्लणा याद फरके अति उद्देगके साथ उसे सदद कर रह जाता रै | जात स चायुना सूदृ्टी न स्मरति । पूरे जन्समरण कम च. शुमाशुभम्‌ ॥ ज्योदो यदद भूमिष्ठ होता है त्योद्दी सभी वार्तें भूल ज्ञाता है । चाह्ममायु दो उसकी पुरातन स्खतिफों विनाश कर डालती दै। इसी नियमसे जन्म मीर मृत्यु हुआ करती है। दशैनशाखर्मे जीवफ्रा जन्म. गौर स्त्यु चिपय इस प्रकार निर्दि हुआ है । जम सौर ज मके वाद खत्यु यदद थयश्य होगी दी. 1 इस प्रक़ारका जम थीर स्त्यु ही जीयफा प्रत्यमाय है । अब तक मुक्ति नहीं होगी तव तक पूर्पो्त प्रकारसे जम और मरण-पलेशका भाग करना दो पड़ेगा । मुक्ति होनेसे फिर प्र त्यमाव नहीं दोगा। सभी दुरीनशाख्रॉमे जिससे यद प्र व्यमाय अर्थात्‌ जन्मछृत्यु न हो उसका विषय समका गया है । प्र त्यमाविक (स ० ल्रि०) परे व्यमाय सम्दन्घीय इदलोक सम्बघी । प्रेत्वन्‌ (स पुर) प्र इ वनिपू । १ इन्द । २ बात हवा 1 श्रेप्सु (स ० दि०) प्राप्त मिच्छुः मर यापू सनःउ । जो पानेमें इच्छुक हो जो फोई चान पानेक्री खादिश परता हो । प्रेम (स ० पुर कछो० ) घियस्थ माया प्रिय ( प्रृष्ठयादिस्य इसरिष्वा । पा पहाएर३ ) इति इसमिय _ ( प्रियत्विरेति | पा हा १३) इति प्रदेश था मी तपणे मणिन। ३ सौद्दाइ 1 पर्याप--में मा प्रियता दाई स्नेह 1 प्रे सके प्रियता हार्ड स्नेड भादि कतिपय पयाय




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