हिन्दू देव परिवार का विकास | Hindu Dev Parivar Ka Vikas

Hindu Dev Parivar Ka Vikas by श्री सम्पूर्णानन्द - Shree Sampurnanada

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका मानें वार अव्याया में मैंने एक लम्बी कहानी को अत्पाक्षयों में सक्षेप में वाधने वा प्रयत्न किया है। प्रयत्न सफल हुआ हो या न हुआ हो परन्तु श्रयास बरने में ही बहुत सी ऐसी याता को छोड देता पडा जा निश्चय ही विपय से सम्मद्ध थी । उनके समावेश से पुस्तय की रोचक्ता बढती । वहाँ तक बहानी में मूड सृमर की रक्षा हो सकी यह कहना भी कठिन है। ऐसे घिपय के प्रततिपादन में पद पढें का नाइया का सामना करना होना है। पुस्तक का नाम है हिंदू देव परिवार वा विकास । यही से कठिनाध्यो का श्रीगणेगा होता है। हिट के स्थान मे थार्य्य शब्द रखा जा सकता हूं। आरम्भ में इस शब्द का व्यवहार किया भी ए्रया हैं परन्तु आय्य क्सिको गहते हूं या वहत थे ? जो छोग आय्य कहे जाते थे या यी पहिए थि छपने वा आर्य बहते थे उनवी बया विशेषता थी वया पहिचान थी साधारण बोलचाल म आय्यों को एक जाति मानने का चलन हैं परतु जाति विसपी पहते हूं ? न्याय के आचार्य्यों ने कहा है. समानप्रसदास्मिका जाति जिन लोगा का प्रसव जम एक सा हो उनको जाति एवं है। हम बहुत टूर न जाप पर यह तो प्रत्यक्ष बा विपय हैं कि सभी जरायुजा वा जर्थाति माँ मे दूप पीनवाला या प्रसव एक सा होता है। गम में आने से लेकर जम लेने तप थी प्रक्रिया एव सी होती है । इस दृष्टि में चूहा विरठी ब्याघ मनुष्य--सय एवं जाति के हैं । स्पष्ट ही इस परिभाषा को मानपर तो जास्पों बे सम्थप में कुछ बहा नहीं जा सदेगा 1 प्राणिशास्त्र समान जाहित्व बी एस संगीण बसौदा बताता है। दो प्राणी एवं जाति बे हैं या पही द्रावों परखन के लिए यह दखना चाहिए कि उनमे यौत सम्बंध हो सकता है या नहीं 1




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