किस्सा कप्तान गपोड़शंख का | Kissa Captan Gapodshankh Ka

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Kissa Captan Gapodshankh Ka by मदनलाल 'मधु' - Madanlal 'Madhu'

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about मदनलाल 'मधु' - Madanlal 'Madhu'

Add Infomation AboutMadanlalMadhu'

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
पोत के बारे में भी ऐसा ही हे। उसका नाम रख दीजिये भीम या सूरमा - उसके सामने तो जमी हुई वर्फ की तहे भी पिघल जायेगी लेकिन अगर उसका नाम टव रख दिया जाये तो वह तैरेगा भी टव की तरह और बिल्कुल शान्त मौसम मे भा उलट जायेगा । इसलिये मैने अपने पोत का नाम तय करने के पहले दसियो नाम सोचे और उन पर सोच-विचार किया। मैंने उसका महावली नाम रखा । हैं न बढ़िया नाम बढ़िया पोत के लिये यह था वह नाम जिसे सभी महासागरो में बडी शान से लिया जा सकता था मेंने तावे के ढले हुए अक्षरों का आर्डर दिया ओर उन्हे अपन हाथ से पोत के प्रृप्ठ भाग पर लगाया। उन्हें रगड-रगडकर खूब चमकाया और वे आग की लपटो की तरह लौ देने लगे। आध मील की दूरी से महावली पढ़ा जा सकता था। तो उस मनहस दिन मैं सुवह ही डेक पर अकेला खडा था। सागर एकदम शान्त था और यन्दरगाह पर नीद की खुमारी छायी थी। उनीदी रात के बाद मैं सोना चाहता था... अचानक देयता क्या हू कि बन्दरगाह का छोटा-सा जहाज छप-छप करता आ रहा है वह सीधा मेरे पास आया और उसने अखबारों का एक बडल मेरे डेक पर फेक दिया । यह तो सभी जानते है कि अपनी तारीफ हर किसी को अच्छी लगती है। हम सभी ठहरे लोग यानी इन्सान ओर जाहिर हे कि जब हमारे बारे मे असबार मे लिखा जाता हे तो हमे खुशी होती हे। जी हा खुणी होती हे चुनाचे मेने अखवार खोला । पढा -- विद्व-याना के लिये रवाना होने के समय कल जो दुर्घटना हुई उसने कप्तान गपोडशस द्वारा अपने पोत को दिये गये नाम को पुरी तरह सार्थक सिद्ध कर दिया... मुझे कुछ परेशानी हुई लेकिन साफ कहू तो वात पुरी तरह से मेरी समझ में नहीं आयी । मैने भऋटपट दूसरा अखवार खोला तीसरा खोला. इनमे से एक में मुके एक फोटो दियाई दिया -बाये कोने में मं था दाये मे मेरा बडा सहायक सब्यल और बीच मे हमारा सुन्दर पोत और शीर्षक था- कप्तान गपोडगख और बता पोत जिस पर वे यातमा को रवाना हो रहे है तब सारी बात मेरी समभ मे आ गयी। मं पोत के प्रृप्ठ भाग की ओर लपका ध्यान से उसे देखा । वही हुआ था -नाम के वबुछ अक्षर उतरकर गिर गये थे। महावली का महा ओर ई वी मात्रा का ऊपरी भाग गायय हो गया था बडी वेहूदा वात हो गयी थी ऐसी वेह्दा कि क्या कहिये नेक्नि हो ला श्७




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now