राजस्थानी लोक साहित्य | Rajasthani Lok Sahitya

Rajasthani Lok Sahitya by कोमल कोठारी - Komal Kothari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रथ कथा या कहानी नहीं है । अपिपु पुप्टिमार्गीय सिंद्धान्तों अनुभवों एवं पहिर्यिक रूपों को ब्यक्त करने के प्रकार शो वार्ता कही गया है। इन वार्साओओं 1 घैछी-सीन्दय मी कथित अभवा मोखिक रूप में निहित है । यदि हुम इन थों की परंपरा पर वार्ता का सकोर्ण कपारमक आरोपण करें तो प्रेथों को नहीं मस्त पायेंगे । अत इसी साहित्यिक परपरा मं वार्ता को छोर के स्थान पर हुण करना उचित होगा । अंप्रजो धब्द लोर का अरब है -- थिसे परपरा के गन एवं अनुभव से सोशा भाय समाब का संयूण अभेतन रूप से प्राप्त शान कसी बिपय पर पूर्ण बानकारी और ठोक इन्द्दीं अर्यों में पुप्टिमामियों के प्रंथों में वार्ता कब्द का प्रयोग हुआ है । अत वार्ता के सकीर्ण मर्ष को छोड़ कर सके ब्यापक अर्थ को ही स्वीकार करना उचित होगा । पक वार्ता संकरूत आर विस्तार--जिस युग में छोक वार्ता सबंधो प्रयत्न आरंभ गौर विक्रसित हुए वहू विदेशों से मारत का धनिप्ट संपर्क यढने का मी युग या । संस्कस का चमत्कारिक आाविप्कार पाइघात्य क्षत्र के लिए हो चुका था ओर परत में खप्रेखों के प्रमुत्व की जड़े जम चुकी थीं । इड्डी पादबाट्प विद्वामों में पहिले भारत की सोक वार्ता पर दुप्टिपात किया । टॉड महोदय को समसे पहुसे छोग वार्ता संप्राहुकों में स्पान दिया जा सकता है । इन्होंने एनेस्स एड एंटिक्वि हीज ऑफ राजस्थान में राजस्यान के इतिहाम की ज़ितमी सामग्री एकत्रित की है उतनी ही लोक वार्ता भी । वम्तुत टॉइ ने जो सामग्री इतिहास रूप में दी हू उसका लाषार ऐतिहासिक आाक्यात ( लोजेडस ) हो रहा है । यही कारण है कि उन्हें छोग वार्ता शप्राहक के रुप में भो स्वीकार कर भते हैं । परन्तु छोक वार्ता को चदार और विस्वुत दृष्टि सं देखने का श्रेय प्रथम दो प्रिम थषुओं को है । ये जमेंन वध थे जिस्हूंनि अपसी पुस्तक किप्डर एड हाउस मार्खे सथा तरउस्स्के माईपोलोबी ( १८६४ ) के नाम से निकाला थी । इन पुस्तकों के हारा सोक वार्ता संबंधी प्रमरतों को वश्ञानिग धरातल मिला मौर भारत में ऐसे प्रयोग भी होगे रूगे । अत प्रिम बन्धुझ्ों का छोक वार्ता क्षेत्र में थड़ा मदत्व है । इस विपय का वशानिक बताने वाले में ही दो प्रथम व्यक्ति कहछाते हैं । इन्हीं के प्रयरतों के उपरास्त शोक वार्ता क॑ अप्ययन की प्रबत्ति वढ़ी है। सौकिक बातो के आधार पर वेदिक अध्ययत का वशानिक अनुसयान होने छगा था । इस प्रकार का काय मकसमूूर ने सबसे अधित्र मात्रा में पूण किया है । पाइचारय विवुपी स्वर्गीय श्रीमती धार्नट सोफिया वर्म ने लोक वार्ता विस्तार को एक वज्ञामिक परिमापा छिकी है । उसका उद्धरण डॉ. सत्पंष्द्र के ल्सरि अमु है मारहीब सोक साहित्य भी बपाम परमाए




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