छोड़ा हुआ रास्ता | Chhoda Hua Rasta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मभी साहित्य पुराना पडता है। लेकिन फिर उस में से कुछ नया हो जाता है। जब साहिय पुराना पड़ने लगता है तव जो वाल वी दृष्टि से अधिक निकट होता है वही अधिक तेज़ी से पुसना पड़ता हुआ अधिष दूर जान पडता है। उसी वो ले वर हमे अधिय आश्चर्य या अममजस होता है कि अभी कल तक यह हमे नया कँसे लग रहा था ? इस प्रक्रिया को समझना बहुत बठिन नहीं है। बालास्तर में जो साहित्य फिर नया हो जाता हे--र्या ऐसा हो जाता है मानों पुराना पडा ही नदी था--उसे हम बालजित्‌ साहित्य वहते हैं । पर वास्तव में परिवर्तन का कारण जितना उस मे होता है उतना ही हम में भी होता है। वदले हुए हम फिर एवं ऐसे ठीर पर आ जाते हैं जहाँ वह साहित्य हमारे लिए एक नयी अर्थवत्ता पा लेता है--व्योकि हम उस मे नपी अर्थवत्ता देखने लगते हैं । हर साहित्य में जो नयी विधाएँ हैं--उपन्यास या वहानी--उन मे यह किया अधिक तेज मे होती है । जो पुरानी विधाएँ है--काव्य या नाटव-उन में यह कया अपेक्षाइत धोरे होती है | फिर प्रवृत्ति को ध्यान में रखें तो लय चर सकते है कि किसी भी दिधा में जो रचना-समूह अपने ही काल के यथार्थ के चित्रण पर अधिक वल देना है. (और भाषा बा मुहावरा और तंवर कालिक यथार्थ का एक महदपूर्ण पहलू है) वह अपेशया जल्दी पुराना पद जाता हैं क्योंकि कालिक यथार्थ जत्दी बदल जाता हैं उस का पुराना पड़ना हम अधिक तीव्रता और स्पप्टता के साथ देख सकते हैं इसलिए उस से वेधे साहित्य बा पुराना पड़ना भी अधिव लक्ष्य होता है । इसी लिए कहानी सब से जल्दी पुरानी पडठी है। फिर कहानियों में वे था चैसी कहानियों और भी जल्दी पुरानी पढती हैं जो अपने समय के समाज के बाह्य यथा से देंधी होती हैं । ऐसी कहानियाँ जब तक नयी होती है तब तक सब से नयी दीखती हैं उन की तात्कालिक सम्पूक्ति और रेलेवेंस सब से अधिव जान पड़ती है पर जब वे नयेपन से हटती हैं या नवतर्‌ के समान्तर आती हैं तय उतनी ही ₹्वरा से उन का लयापन उन की प्रासगिकता प्रश्नाधीन हो जाती है 1 इस कथन की जाँच किसी भी देश के साहित्य को ले कर की जा सकती है। कहो भी काव्य उतनी जल्दी पुराना नहीं पड़ता स्वेश्र कहानी ही सब घुंधला या श्रूठा पड जाता है भूमिका / 15




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