एक रास्ता और | Ek Raasta Aur

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Ek Raasta Aur by यादवेन्द्र शर्मा ' चन्द्र ' - Yadvendra Sharma 'Chandra'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भानी अभी अभी लौटा हो था । उसके हाथ पर कही-वहां चूना लगा हुआ था । उसकी उगली मे जरा सी चोट आ गयी थी । लहू चू रहा था । उसे देखत ही माधो ते भट से कहा कया हुमा भानी ? तरे चौट कसे नग गयी ? एव ईट गिर पड़ी थी । पट्टी कया नहीं बधायी ? अरे बया पट्टी बघाऊ जरा सी लगी है अपने आप ठीव हो जायगी । ऐसी चाट आये दिन ही लगती रहती हैं । हूँ चिता न बर। बस हू मुक्ते आटा शू द दे मैं रोटियाँ सक् लू । (प्रभी गूद देता हू । कहकर माधो पीषे मे से श्राटा निवालने जगा । उसने परात मे घाटा निकाला। झट वी आर सकत करके पूछा जादा और निवालू ? बहुत होगा । । श्राटा यू दत यू दते साधा ने पूछा भाना व्याह के बाद जुगाई सासरे श्राकर खाना बनाता है पिर तेरी बहु श्रपनी रोटिया क्यू नहीं बनाती 1 मुफे नही मालूम । तुके क्यू नहीं मालूम । बस वह दिया ने मुझे नही मालूम । जरा सा बिगड़ वर बहू बाता तू मुझे अधघिव तंग न किया कर ज्यादा चू चप्पड की ता तेरी पुजा बर दूंगा | - उसने भट से अपने कान पकड़कर कहां अरे बाप रे । इत्ती रीस तेरे क्राघ से मेरा कलेजा दापने लगता है । बहुत शनान हो गया है तू । फिर दोनां खाना बनाने लग । अँबेरा धीर धीरे घिग्न लगा था | लगभग सौ घरा की यह बस्ती थी । सारे घर कच्चे । लाल-पीले




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