मिनखखोरी | Minakhakhori

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Minakhakhori by यादवेन्द्र शर्मा ' चन्द्र ' - Yadvendra Sharma 'Chandra'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ठाबुर वेहयाई से ही ही हसने लगीटी॥ ५. पैन. ०० ६ पीप-ज>प्- न दूसरे दिन सुवह-सुबह वडी बूढी ठकु मे भरी हुइ*ठाकु रुके फीज्ह आयी और गरज वर बोली, “केसरदे कहा है 7! ५ दम हा नशे की पिनव मे ठाकुर जिंदा मक्खी नियलत हुए बोली, “मुझे क्या पता ? मैं उसबे' चींचड वी तरह थोडे ही चिपका रहता हू “काना मे कौर मत लीजिए ठाकुर सा। आपको सब पता है। आपको सतलडा हार मिल गया न ? केसरद से अदला-बदली, छि ।* ठाकुर अपनी म भा गया । गालिया देता हुआ बाला, “यूसट, जवान ज्यादा बढ गयी बया २? तू तो खुद कहती थी जि वेसरदे चाखी नही। छिनाल भाग गयी होगी ।”” अचानक गिरगिट की तरह रग बदलकर ठाकुर विनम्र स्वर मं बोला ' मेठ ने मुझे यह हार भेंट किया है आखिर मैं उसका ठाकुर हून? मतलडा हार है---आप पहनेंगी इसे २” एक घुटी हुई चीख बूढ़ी ठकुरानी वे मूह मे निवली। आवाज भरी- भरी भी, ' मैं इस हार पर थूकती फू केसरदे की वीमत पर यह हार 1! ठाकुर उसे चाटा मारता हुआ गरजा, “चुप रह चुडल बकनववा ज्यादा करन लगी है। गदन घड से अलग कर दूगा। एवं भाग गयी उससे कौन मी कमी हो गयी आपके रावले म? एक वी जगह दस ले आऊगा। जागीरदार-जमीदार और डे रावाली मे लडक्यां वी वोई कमी है ? ककर-पत्यर समयत हैं हम वेटियो को । भलाई इसी म है कि इस बात को थही पर जमीदोज कर दो । समझी 1” फ्रि वह अनत सृष्णा व लालच बे साथ बोला, “यह हार क्तिना शानदार है । इसवे हीरे तारो की तरह जगमग कर रह है। मुझे सेठ ने भेंट दिया है। बडा आदमी हून? वस, इतना ही याद रख मेरी पतिब्रता ।/ ठाकुर न मूछा पर ताद दिया । उस समय चौकीदार भागकर आया। बह घबराकर कहते लगा, “ठाकुर-सा, तोरणडार के गुम्बद टूट गये




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