राह चलते चलते | Rah Chalte Chalte

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Rah Chalte Chalte by विष्णु प्रभाकर - Vishnu Prabhakar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मैं न टोदता तो बावा सकने वाला नहीं था । मैंने अनुभव किया वि वाया को कसी वात की भी चिन्ता नहीं थी । वह १६५ मील टूर हरिद्वार जाने वी वात ऐसे कह रहा था जैस हवाई जहाज से जाना हो । मैन टोव- कर पूछा बावा घर पर कौन है ? दावा हूँसा । चोला सब हैं। दिकों वाबूजी वात यह हुई । अय तुमसे बया छिपाना ? उसन मना किया था जौर वटे ने भी । एक बटा है सोनह साल का । वया बरता है? दो लडकियों हैं अपने घर की हूं 1 एक अट्टदास उठा । बाखा ने मेरा प्रश्न नही समझा । मैंने उसे फिर दोहराया । बाबा बोला दादूजी घर पर एक भंस है दो गायें हैं। भापकी दया से एक ग्याभन है। उसे बया डर है ? बस जी उन्होंने बहुत मना किया। उनकी मरजी से आता तो रुपये देत पर मैंने भी कैलाश जान की ठान ली । सो चल पड़ा । कह आया--भागवान तेरा बस एक वम्वल लिये जा रहा हूं । उसने वीडी का कश खींचा भोर एक क्षण स्वकर कहा और दिको थादूजी । वात तो उन्होंने भी ठीक ही कही थी । अगले महीने घेवती की आदी है । भव तुम जानो भात दे लो या दर्शन कर लो 1 पर तुम जानो मुझे भी धुन थी । चल पड़ा । तो बया अभी कंसाश जाओगे ? अजी चता तो कैलाश के लिए था पर किसी ने रास्ता नही बताया । नेपाल पहुँच जाता तो वादूजी कंलाश भी पहुंच जाता । दिको बाबूजी लुम्ह वताऊं 1 मैंने प्रेमसागर मे पढ़ा था कि कंलाश म शिवजी रहे हैं । बस तभी उनके दर्शनों वी ठान ली । मैंन सोचा कैलाश भी द्वारवा वी तरह बसा होगा । वाबूजी में द्वारका हो आया हूं। बहत-कहते चह गवं से भर उठा । बोला वाबूजी द्वारकापुरी के चारों तरफ पानी ही पानी है ऐसा पानी कि मुंह में दो ता जानो नमक भर गया। पर वही द्वारका की भूमि में कुएं हूँ उनवा पानी मीठा है। उसकी माया वा पार नहीं दावूजी 1 पर्वत से भी ऊंचा १३ के हर




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