राजस्थानी के पांच महाकवि | Rajasthan Ke Panch Mahakavi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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७ जब प्रामाणिकता का विवाद उठा तो सम्मतिदाताओं में ये भी थे । इनकी सम्मति प्रारम्भ में प्रथ्वीराज के पक्ष में नही थी किन्तु बाद में एक गीत लिख कर इन्होंने बेलि की पर्याप्त प्रशसा की थी वह गीत इस प्रकार है-- रुकमि गुर लखण रूप गुर रचवरणण चेल तास कुण करे वखांण । पांचमों वेद भापीयों पीथलू पुर्सीयों उमसीसभो प्ररास 1 दुरसाजी को कवि के रूप में जितना धन कीति और सम्मान प्राप्त हुमा वह डिंगल के किसी अन्य कवि को नही प्राप्त हुआ । कवि के अतिरिक्त उनमें भ्रन्य अनेक मानवीय गुण थे । अपने काल के ये भ्रत्यन्त लोकप्रिय डिगल कवि थे। इनके गाँव पचिटिया में श्रचलेदवरजी का एक मन्दिर है। उसमें इनकी एक पीतल की प्रतिमा श्राज भी विद्यमान है । दुर्भाग्य है कि दुरसाजी के पारिवारिक जीवन के सम्बन्ध में श्रघिक सामग्री प्राप्त नहीं होती । इन्होंने दो विवाह किये थे श्र इनके चार पुत्र थे । ये प्राय अपने सबसे छोटे पुन किसनाजी भ्राढा के पास रहते थे । वि सं. १७१२ में भ्रपने इन्ही सबसे छोटे पुष्र के यहाँ पांचेटिया गाँव में इनकी स्वर्गवास हुमा । ध प्रन्थ--जिस प्रकार दुरसाजी की जीवनी के सम्वन्ध में प्रयाप्त प्रामाशणिक सामग्री नहीं मिलती उसी प्रकार इनके द्वारा रचित साहित्य के सम्बन्ध में भी प्रामाणिक सामग्री का श्रभाव है । कुछ विद्वानों -- डॉ. मोतीलालजी सेना रिया डॉ. जगदीश थीवुस्तच झौर श्री सीतारामजी लालस की मान्यता है कि इन्होने स्फुट काव्य के श्रतिरिक्त केवल तीन ही ग्रन्थ लिखे श्रौर वे इस प्रकार हैं विरुद छिहत्तरी किरतार वावनी श्रौर श्री कुमार श्रज्जाजी नी अूचर सोरी नी गजगत । डॉ. हीरालाल माहेश्वरी इनके द्वारा रचित




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