वंश वृक्ष | Vansh Vraksh

Vansh Vraksh by एस. एल. भैरप्पा - S. L. Bhyrappa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बशवूक्ष / १७ सेना नाटव देयने जायेंगे । अवश्य जायेंगे । आज तो वही होगा जो तू वहेगी । हाँ अभी बजा कया है? फिर दीवार पर लगी घड़ी देखव र्‌ बहा-- अरे साढे ग्यारह न्वलो चला जहदी रनान रा दो । तीन बजे महा राज से मिलना है। सच ? आपन मुझे ता बताया ही नही बात वया है ? कायद भूल गया । डायरी मे लिख रखा था । उठा स्नान बा दो । डायरी मे--मैं अंग्रेजी तो जानती नहीं मैं ठहरी निरी गँवार अन पढ़ लड़की यह पति वी वाँह थार्म युमलयान स ले गई। गरम पानी हाला। सिर पीठ शरीर से सावुन मला और स्नान क॑ वाद भगवान वी पूजा वी । पत्ति और पुथ व हससाद दिया । तीना न भाजन दिया तय तप चरीव देढ बज चुरा था । वतन धोवर और बचे हुए भाजन को ढवमर नागलक्ष्मी पान की तश्तरी लेवर राव के अध्ययन-वल में आई तो वे थाहर जाने के लिए तयार हा चुबं थ । बाला मूट काली टाई सिर पर पगडी चाँघवर वे चूट पहन रहे थ। देखते ही नागलदमी ने बहा-+ अरे यह चया ? आप सो निकल पड़े क्या आज पान भा नही खायेंगे जल्‍ी ही सैयार घर देती हूं ठहरिए नहीं नाणु दो बजने को है । ठीक तीन थजे महाराज से भेंट है। पान खा लू तो पुन मजन किये विना उनके सामन न जा सकूगा कहवर नाहर निवल गये । ताद्धल पात्र मज पर रखकर नागलदमी उनके पास आई और उनके दोना हाथ अपने हाथा मलेगर बहन लगी-- मेरी सरफ तो देखिए । डॉ० राव निहारने लग तो नागलदमी न स्नेह भर रवर मे कहा-- जाकर जह्टी आइए । मैंन अभी अभी भगवान की पूजा वी है महाराज जरूर आपको सहायता नरेंगे । डा० सटाशिवराव जब देस वप के थे तभी उनकी माँ दो बच्चे छोड़- वर चल बसी थी । इनके मासा कुणिगलु रामण्णा न ही सदाशिव और राज दोना बच्चो को पाला-पोसा । दो साल घार पिताजी भी स्वगवासी हो गय । लड़का को पिता से वाई जायदाद नहीं मिली । सदाशिव ामण्णा बी पुत्री से दस साल बडे थे 1 जद बह पाँच साल वी थी त्तद




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