वंश - वल्लरी | Vansh Vallari

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Vansh Vallari by उर्मिला कुमारी - Urmila Kumari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(२०. 2) का. 'विचार किया ।. उसे तार दे दिया गया, और वह शीघ्र ही झा गया । जब उसे सारी स्थिति से अवगत कराया गया तब-उसने कहा-- “हुसें अपनी ओर से कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाना चाहिए जिससे अन्त में लेने के देने पढ़ जाएं । पिता जी को मिला हुआ यह समाचार सव्य हो सकता हे, किन्तु जब तक आसासियों के लगान देने का समय नहीं आ जाएगा तब तक हम इसका कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर सकेंगे । यदि हम केवल इस समाचार को ही आधार मान कर जाटों से लड़ाई-कगड़ा करेंगे तो झन्त सें उनका पलड़ा ही भारी रहेगा और स्पष्ट प्रसाण के अभाव में पुलिस हमें पकड़ कर जेल में डाल देगी । इस प्रकार सम्मान के बदले हमारा अपमान दी होगा जो इस में से किसी को भी सह नहीं हे । अतः हमें चाहिए कि कुछ महीने भेय घारण करें । समय आने पर सब कुछ देखा जाएगा । यदि आवश्यकता हुई तो मार-पीट से भी हम पीछे नहीं हुटेंगे ।?? सब ने र्सामलाल की दूरदर्शिता और बुद्धि की भूरि-मूरि प्रशंसा की । सणिलाल ने भ्रपने प्रिय तथा चतुर छोटे भाई को कण्ठ से लगा लिया और कहा--“'श्यामलाल ! निश्चय हो तुम ने बुद्धिमत्ता और दूरदर्शिता की बात कददी है । आयु में तुम से बड़ा टोने पर भी बुद्धि में मैं दुम से बहुत छोटा हूं । झाज से मैं तुम्हें अपना गुरु सानता हूं 1?” यह सुन कर श्यामलाल को अतिशय लज्जा का अनुभव हुआ । वह बोला--'भाई साहब ! में आप से छोटा हूं और छोटा ही रहूंगा । जो कुछ मेरी अल्प बुद्धि है वह सब श्राप सब की कृपा का प्रसाद है । बाप ऐसी बातें कद कर सुझे व्यर्थ कांटों में न घलीटिए ।””.. मखिलाल कोई उत्तर देने दी वाला था कि इतने में बिन्दू ने झाकर कद्दा कि उन सब को लाला जी ने बुलाया है । यह सुवकर मणिलात, राघेश्याम और घनश्याम को कोई भूली हुई बात याद आ गइ । तीनों




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