राव गुलाबसिंह और उनका हिन्दी साहित्य | Rav Gulab Singh Aur Unka Hindi Sahitya

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Book Image : राव गुलाबसिंह और उनका हिन्दी साहित्य  - Rav Gulab Singh Aur Unka Hindi Sahitya

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about डॉ. र. वा. बिवलकर - Dr. R. Va. Bivalkar

Add Infomation About. Dr. R. Va. Bivalkar

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
भूमिका हि दो साहित्य थे अनुगपाय दा क्षेत्र आाज दविटी भाषी प्रेत तर ही मीमित नही है अपितु अहि दी भाषी प्रदेश में भी विस्तारित हुआ है । अनुमधाप मे एसी नई सामग्रियां उपलय हो रही है जिसके बारण हिही साहित्य बी परम्परागत मा यताआ मे परिवतन की जावत्यक्ता प्रतीत होने लगी है। इरा दिगा म प्रतिष्ठा प्राप्त समाक्षक एवं सत्या वेपी जनुसघान बताआ दारा कुछ बाप हुआ है और बुछ हो रहा है। शोध सामग्री मे ऐंस अनव अतात एवं अप्पज्ञाते बचियो का साहित्य उपलघ हुआ है शिसवे बारण हिंदी साहित्य वे इतिहास गे ये बेवल श्रीवद्धि होगी रही अपितु उसे नइ टिता भी प्राप्त हुई है । शीति काल एव आधुनिक काल की सपिरखा के काल मे कई बबि ऐस हैं जिनके ग्रथ जनक दप्टिया से सहत्वपू्ण हैं । इन ग्रथों मे से वई सहजता से उपलब्ध हैं तो बई ग्रय दुरभ एवं वठिनता से प्राप्त हो जाते है। ग्रयो बी दुल्भता उस पर लिपिंत समीक्षा वा सबधा नमाव परिधम साध्यता आदि अनेक कारणों से इन प्रथा वा सवा गपूण एवं सम्यक अध्ययन नहीं हो सका जिसके परिणाम स्वरूप स्वभावंत सर्म्दा घत कूल पड का अध्ययन भी एक दृष्टि स परिपृण नहीं कहां जा सकेगा । हि दी साहित्य के अनात अत्पतात साहित्यकारों वो प्रकार में लावर उसका व पर सम्यक अध्ययन प्रस्तुत बरने की इच्छा मरे मन मे कई दिनो से थी । एक हिन जपनी इच्छा को मेन आदरणीय डा० इष्ण दिवाकर के सम्मुस यक्त विया | मेरी प्राथना को ध्यान मे रखते हुए उ होने तथा आदरणीय टो० जान दप्रकाशा दीक्षित अध्यक्ष हि दी विभाग पूना विश्वविद्यालय ने पाररुपरिवा विचार विमद्य व परचात हि दी साहित्य वे अत्पचात साहित्यकार राव गुठाब भिह और उनका हि ही साहित्य विपय मर छिए निश्चित किया । इस शोध वी दिगा में हि दी साहित्य के लगभग सभी इतिहासो वा मंमे अध्ययन क्या जौर आइ्चय इस बात का रहा कि अधिकाश इतिहास प्र थो मे रव गुछावर्सि जस समथ आचाय एव कवि का उलेख भी नहीं मिला । वतिपय प्रयों मे प्रसगत उल्लेख मात्र प्राप्त है । समवालान चरित्र लेखवों वे प्रथा में नौर उद्दीव कापार पर दो एव इतिहास प्र यो मे वधि का जीवन चरिष् एव सादि




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now