निशीथ | Nishith

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Nishith by उमाशंकर - Umashankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कविता आत्माकों सातृभाषा कॉलेजका मेरा पहला वबर्स था। दिवालीको छुट्टियाँ शुरू होते ही पद्रह रुपए मँगनी पर लेकर हमें तीन मित्र अहमदावादसे भाव जानेके लिए गाडीमे बैठे । गाडीसे आवुरोड तो पहुँचे पर फिर पहाड चंढे चछ कर उतरे गौर वतनका सौ मीक जितना उंगरमालासे गुजरतां घिकट मार्ग भी पेदल ही काटा । हे गुजरातके मेरे गाँवमे मेरे घरके पीछे ही मूलमें में डूँगरोका। उत्त ही रहा उंगर है अर्वदर्गिर प- जे गर है। परन्तु अवृदर्गिरिका अनुभव मुझे प्रकृति-प्रेममें रहराता गासद पूर्णिमाकी रात्रि थी । काव्यदी क्षाके लिए तरसते तरुण चित्तको अर्वृदगिरिकी पर्वतश्नीने शरद पूर्णिमाकि प्रफूर्क आलोकमें वन्य मत्र दिया सौन्दर्यों पी उस्झरण गादों पछी आपमेछें-




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