खान खाना नामा भाग - १ | Khan Khana Nama Bhag - I

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Khan Khana Nama Bhag - I by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहना भाग | ह्ठे मेजर बैरास खाकी राजासे सागा। राजाने लाचादीसे इसकी ससके पास मेन दियां। घेरामखा मालयेके रास्ते में शेरखांसे सिख । व पदलो ममलिसमें उठकर मिला गौर उसका सन मनानिके लिये चिकनी चुपडी वातिं.वारने लगा जिनमें य. भी कह गया कि जो इखलास ( भक्ति ) रखता है बच खता नहीं करता । . इस पर इन्होंने भी कहा दि हा लो इससलास रखेगा यह खता नषीं करेगा। फिर थुर्नपुरके याससे ग्वालियरको चारकिम अवुलकासिम (के १) साध सुज्रातकों भागे। रास्ते मे शेरण्हाका बकोन गुजरातसे धाता था उसने खबर पावार भ्रादमी मेला भर अदुलकासिमकों लो चेरे सुहरेस ठोदारू जवान था. पकंड लिया।. बैरासखाने नेकजातीसे (सध्ननतासे) एठ करके वादा कि से बरामग्दा है । मगर अवुलकासिसने भलमनसीसे कहा कि यह तो मेरा नोकार है चौर चाइता है कि मेरें वास्ते अपनेको कुरबान करें । तुम इसको जाने दो । इस तरह बेरामणा सचकर रुअरतसें सुल्तान राहुस्पूदफे पास पहुंचे और अहु्त कासिमको लब थेग्खाके पास ले गधे तो उसने बेसमभौसे ऐसे सच्नन पुरुपकी सग्वा डाला 1 शेरणखा कहा करता था कि लब बे रामछाने उस समजलिसमें यह कहा धर जी इखलास रखता है। खता नहीं करता है ।? तो मैंने समझा लिया था कि यद् इमसे मेल नही करेगा । शुजरातके सुलसान संइसुदने २) भी बे रामखाकों अपने पास रखमेके वास्ते बइत कहा मगर बे रामुखाने कवूल नहीं किया अर मक्के लानेको छुट्टी लेकर सूरत बन्दरम आये । (१) यह इमार्यको तमंसे ग्वालियरका हाकिम था । जब शेरशाद इमायू पर फतद् पाकर ग्वालियर पर गया तब इसने कुक्त दिनों तक लड़कर किला सॉप दिया और आप उसके साथ चो गया। (र) बद्ादुरके पौछे य४ सुलतान मसूद सन्‌ ४४. सवत १५८.४ में गुजरातका बादशधाइ चंभा था ।




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