वीरश्रेष्ठ - सावरकर | Vir Shrestha Savarkar

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Vir Shrestha Savarkar by श्री सिद्धनाथ माधव लोढ़ - Shri Siddhanath Madhav Lodh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जन्म गौर बात्यका । ही बेर टाऊ या यास्तव लौकर खेर करो परमेश्वर ती ॥ निश्चय झाछ़ा मां अपुशा परदेगी पट ना घरती 1२ ३1 चढ़ा चढा जाउ या घेठ या देशि पटाना पटापटा ॥। जाड़े भरड गे ऋसेद्दी मसो सेवु परि झटाझदा ॥१.४॥| ना स्पर्मू त्या पशुपट।ढा मद चरि मिखार तर भावू ॥ चेऊ सडतर भड़ीं सुखफर धर्मचि माघुनिया राहु ॥२५॥ द्रव्य साणि दी योर घेडनि परकी पोरें सणितीर ॥ एफचित्त करमिया गेढयानों दित्त जिंडया पुनरपिर ॥२ ६॥ ब्रिदवेश्वरि ही नार यणि ही यमद्रि दर सदि सुर्वर्णीं ॥ चर्म सिद्धिसी दावी नेउनि मोद देति निम्न भक्त जनीं ॥२७॥ दूर शज्ञनी रजनी जायो साग प्रकाशो रविज्ञान | वराबयाल्प रत्न पटाना रो सार्य हे रणदान | २८) कवितारूपी माला अर्पी आार्य बघुशी सार्थक दो ॥| भक्ताकर्वी मन देवा सेवा त्यागी अर्पग दो ॥२९॥। भायाजुयाद | थार्य भाईयों जागो | क्यों छुम सुर्स सरीखे विदेशी चस्त्रोंसे मपने ागेरको सजात॑ दो इस इटकों छोह दो । सागो इम निश्चय करें कि स्टेच्छॉफ बनाये बरत्र कभी धारण नहीं करेंग । कइ्मीरके दाल-दुशार्टोको छोड़कर मढपकेपर तुम मोदित होते हो ? मठमछको छोड़कर सपने ्वचलठ शरीर पर हुस्फे वस्त्र क्यों ्वढाते दो ?. राजमददन्द्रीकी चोटोंको छोडफर फच्चे रगबाली चीरें क्यों खरीदते दो ? छरें तुम्दें इश्वरने कटोरी दें रखी है तुम नरेटीका झमिलाप क्यों करते दो ? यदढाके भते हुए पीताम्बरोंको छोड़कर पतढनफे विदेशी बरत्रों के लिए चेन्नार म्यों दोरदे हो जद




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