राजस्थानी भाषा - साहित्य - संस्कृति | Rajasthani Bhasha Sahitya Sanskriti
श्रेणी : भारत / India, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.63 MB
कुल पष्ठ :
142
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about रामप्रसाद दाधीच - Ramprasad Dadhich
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)राजस्थानी साहित्य का डतिहॉस रा काल विभाजन की मग्यायें किसी भापा के साहित्य के इतिहास-लेखन की प्रत्रिया बहुत ही जटिल हैं । इस कार्य में इतिहाम-दर्शन के वहुमान्य सिद्धान्तो भ्रौर प्रयोगो के अंगी- कार की समस्या तो है डी कि इतिहास-लेखक ने विस दॉष्ट से इतिहास लिखा है । प्राचीन वाल से लेकर वतंमान तक के साहित्य की सम्पुणं उप- सब्ध पाण्डुलिपिया प्रकाशित्त-भ्रप्रकाशित कृतियां उनके रचनाकारों का जीवनदुत्त इत्यादि के विपय में प्रामाणिक तथ्य एकन्र करना भी श्रपने आप में एक म्त्यन्त दुप्कर कार्य है। फिर उस सम्पूर्ण साहित्य को काल- सण्डो मे विभाजित करना भी एक समस्या है । प्रत्येक युग की परिस्थितियां शिन्न-भिन्ष होती है। भाषा श्र साहित्य युग-स्थितियों का प्रभाव ग्रहण करते हुए रूपायित होते है। जन समाज की विचारधारा विश्वास आास्थायें शामनतस्त्र समाज को झाधिक ग्रौर नें तिक श्रवस्था--थे सब माहित्य-रचनां को सहस्राब्दियों की लम्वी परम्परा को कतिपय कॉलखण्डों से विभाजित तर ही सम्भव हो सकता है । साहित्येतिहास-लेखन के कुछ ग्राधार ल्लोत होते है-- जंसे साहित्यकारी की प्रकाशित-अप्रकाशित स्वनायें साहित्पकारों व साटि- त्यिक रखनाम्ों का परिचय प्रस्तुत करने वाली कृ तियाँ साहित्य के विभिन्न थगो रूपी घाराशों व प्रवृत्तियो से सम्बन्धित श्रालोचनान्मक थे अ्रनुमं धान नात्मक ग्रन्थ विभिन्न यु्ों की श्रान्तरिक श्रीर बाह्य परिस्थितियों पर प्रकाश डालते वाली सामग्री शिलालेख वशावलियाँ इत्यादि 4 सी _ प्रा अतिहास के काल-विभाजन के भी कुछ झाधारपूठ वत्द उठता है कि वे अब तक कया रहे है श्रौर बया हो से इद हू है भ्रव तक राजस्थानी साहित्य के इठिट्रार ट्रोर दिपयड जो ग्रस्थ उपलब्ध हैं उनके लेखकों मे प्रकारान्तर में यड़ यहीं -टन्दजीं स्वीड्यर पिया है दि हे राजस्थानी साहित्य की सम्यूर्श धग्रररशिद बुडिदों का पता नहीं सदा सर अनेक ऐसी हस्तलिखित पुस्तकों ग्डी हैं जिद रचनावगल दा सिर न सभव नहीं हो सका । भेड़ मेले लय है मिनके जीवनसरर हि खिक इतिवृत्त नहीं मिला । दें दद दरिस्यिविदों में प्ासासिगँ कालविभाजन का वार्प वडित सा है ॥ दी दा
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