भारत इतिहास की मिमाषा | Bharat Itihas Ki Mimasha

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Bharat Itihas Ki Mimasha by जयचंद - Jaychand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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थ आइके पार देखने के भी उपाय कर लेते हैं । मैं झ्पने १६४४. वाले संकल्पों को श्रव भले दी पूरा न कर पाऊँ पर उन जैसे कुछ संकल्प श्रव भी मन में हैं। एक यह कि श्रारम्भ किये इतिहास-कायं को जारी रखने के उपाय कर जाऊँ । दूसरा यह कि देश की जिन दशाश्रों के कारण हमें श्पने ध्येय की श्रोर बढ़ते पग पग पर ऐसा संघर्ष करना पड़ा उनकी ऐतिहासिक छानबीन पेश कर जाऊँ | मैं प्रेमी पाठकों को विश्वास दिलाता हूँ कि इन संकल्मों की पूर्ति के लिए. श्रन्तिम दम तक द्ाथ-पैर मारता सहूँगा । कठिनाई श्र खानावदोशी के बीच इस ग्रन्थ के नव-परिशिष्टों .को तैयार करते हुए. जिन सब्जनों से सद्दायता मिली उनके उपकारों का उल्लेख कर दूँ । इसमें जो नये नक्शे पहली वार दिये जा रहे हैं उन्हें मेरे साथ बैठ कर खींचते हुए भरी कु० ग० सुब्रह्मणय ऐयर श्र सौ० सुगीला ऐयर ने जिस स्नेह का परिचय दिया उसकी याद से भी मन प्रसन्न होता है । नेपाली इतिहास लिखते हुए. श्राचाय सिल्व्याँ लेवी के ग्रन्थ ल नेपाल को किनारे छोड़ मैं नहीं जा सकता था । पर मेरा फ्रांसीसी भाषा का ज्ञान नाम मात्र का है । श्पनी उस कमी को मैंने श्रपने मित्र भारत सरकार के विधि मन्त्रालय के विशिष्ट द्धिकारी श्री वालकृष्ण के फ्रांसीसी के ज्ञान से पूरा किया । २६४४ की शरदू की रातीं में उनके घर जा कर उनकी सद्दायता से उस अन्थ के श्रंशों को पढ़ने की स्मृति भी कैसी श्रच्छी लगती है मित्रचर चेत्रेशचन्द्र चट्टोपाध्याय जी से परामशं श्रौर पुश्तकों की सद्दायता पदले की तरह इस श्रवधि में भी मिलती रही । नव-परिशिष्रों के लिए विशेष कार्य मैंने दिल्ली में केन्द्रीय पुरातत्त ग्रन्थागार में किया | वहाँ के योग्य प्रन्थपाल् श्री लव योविन्द परव योग्य उप-अंयपाल श्री आनन्द श्रीघर घबले श्रौर कर्मचारी श्री भागवत सादी मेरे कार्य की प्रगति में जैसी रुचि दिखाते रदे उससे वहाँ किया श्रम बड़ा ख




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