मेरे भाई बलराज | Mere Bhai Balraj
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.55 MB
कुल पष्ठ :
170
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बचपन ६... + प्र पर साथ ही हमारें जीवन-यापन में बुछेक रवि झन बा जो- हम बच्चों की समझ में नह्दीं आती थीं । एक वहुत-से ग्राहक मुसलमान दुकानदार थे जिनमे अनेक 1 कभी हमारे घर पर साते रहते थे । पिता जी मुसल्लमान जाति की तो निंदा किया करते थे पर जब ये मुसलमान व्यापारी घर पर आते तो इनकी बड़ी आाव-मगत करते इनसे बड़े वाव और आदर-सत्कार से भिलते । उन्हे वह घर पर भोजन भी कराते पर उनके चले जाने के बाद उन बर्तनों को जिनमें उन्होंने भोजन किया था जलते अंगारो के साथ साफ़ किया जाता था-- जबकि सामान्यतः हमारे घर मे इस तरह से बर्तन साफ नही किये जातें थे । जिस मुहल्ले में हम लोग रहते थे वहां की अधिकांदा आबादी मुसलमानों की थी । सु्तलमान पड़ोसियों के साथ पिता जी के संबंध बड़े स्नेहप्ण थे । पर फिर भी पिता जी मुसलमान बच्चो के साथ गली-मुहल्ले में हमे खेलने नही देते थे। हमारी दोनों यहनें आयेंसमाज द्वारा रांचालित कन्या पाठशाला मे पढ़ती थी पर हैरानी की यात यह है कि पिता जी ने उन्हें स्यूल में से उस समय उठा लिया जब वे अभी मिडिल कक्षा तक भी नही पहुँच पाई थीं । इन दो बहनों पर तरह-तरह की पावदियां भी थी । हमारे घर की ऊपर बाली मंजिल पर एक छज्जा था जो सड़क की ओर खुलता था । हमारी बहनों को उस छज्जे पर जाने की मनाही थी भर की किसी भी खिड़की में से झ्ञांकनें की भी मनाही थी । उनसे इस बात की अपेक्षा की जाती थी कि वे ऊंची आवाज में हंतें-वालें नही । कभी अनजाने में अगर उनकी आवाज़ ऊंची उठ जाती- जो पड़ोसियों के काम में पड़ सकती हो हों पिता जी ंपने दफ्तर में बठे-चेठ ही ऊंची आवाद् लगाते गौर सह्ती से डांट दिया करते थे । बाहर सके पर श्लता कोई राहगीर कोई इश्किया गोत या पंजाबी टप्पा गाता हुआ गुजरता तो हम बच्चों को हिंदायत थी कि हम अपनें दोनों हाथ कानों पर रख सें ताकि गीत के वोल हमारे कानों में न पड़ सकें । ऐसा था उस घर का माहौल जिसमें बलराज का बचपन बीता था । आयंसमाज के साथ पिता जी का लगाव बहुत गहरा था । यहां तक कि उन्होंने अपने दोनो बेटों को किसी सामान्य स्कूल में भेजने की बजाय एक शुरुकुल में दाख़िल करवा दिया जो शहर के बाहर स्थित था यह गुरुकुल पोठोहार के नाम से जाना जाता था और जिसका संचालन आार्येसमाज का गुरुकुल विभाग कर रहा था । बलराज का गुरुकुल में प्रवेश बड़ा विधिवत हुआ । बलराज के सिर पर उस्तरा फेरा गया और बाकायदा हवन तथा चेदमंत्रों के उच्चारण के बीच
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